राष्ट्र समर्थ और सशक्त कैसे बनें ?

प्रजातंत्र की सफलता का आधार मतदाता की देश भक्ति और दूरदर्शिता पर निर्भर रहता है । यह तत्त्व जनमानस मे जितने अधिक विकसित होंगे उसी अनुपात से वे शासनतंत्र सँभालने के लिए अधिक उपयुक्त व्यक्ति चुनने में सफल हो सकेंगे । श्रेष्ठ कक्तिक्त ही किसी महत्त्वपूर्ण काम को ठीक तरह सँभालने में समर्थ हो सकते हैं । अधिक सही, अधिक योग्य और अधिक सुयोग्य हाथी में शासनतंत्र रहे तो प्रजाजन उस सरकार के अंतर्गत सुख-शांति और प्रगति का लाभ प्राप्त करेंगे । इसके विपरीत यदि अवांछनीय तत्त्वो ने शासन पर कब्जा कर लिया तो वे उसका उपयोग व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए अपने गुट के लिए करेंगे और उस के कारण जो अवांछनीय श्रृंखला बढ़ेगी उसकी चपेट में सरकारी कर्मचारी भी आवेंगे । उनका स्तर भी गिरेगा और इस गिरावट का अंतिम दुष्परिणाम जनता को ही भोगना पड़ेगा । इसलिए जहाँ भी प्रजातंत्री शासन हो, वहाँ सबसे प्रथम आवश्यकता इस बात की पडती है कि वहां का वोटर इतना सुयोग्य बन जाय कि अपने वोट का राष्ट्र के भविष्य को बनाने-बिगाड़ने की चाबी के रूप में राष्ट्रीय पवित्र धरोहर के रूप में केवल उचित आधार पर ही उपयोग करें । दुर्भाग्यवश अपने देश में ऐसा न हो सका । यही निरक्षरता का

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