ऐसा योगी जिसके पेशाब से दिये जलते थे।

February 1947

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सिन्ध प्रान्त में शिकारपुर के पास एक ऐसे योगी की चर्चा सुनी जिसके पेशाब से दिये जलते थे। हिन्दी भाषा में “पेशाब से दिये जलाना” एक कहावत है जिसका प्रयोग तेजस्विता प्रदर्शन के लिए होता है। जैसे किसी आदमी का आतंक चारों ओर छाया हुआ हो, उसका आदेश मानने के लिए बड़े बड़ों को विवश होना पड़ता हो तो उस आदमी के लिए कहा जायगा कि “उसके पेशाब से दिये जलते हैं।” इस कहावत को चरितार्थ करके अपनी तेजस्विता और योग साधना की सफलता प्रकट करने के लिए वे योगी जी पेशाब से दिये जलाते थे। उनके शिष्यों का कहना था कि वे दिन भर में केवल एक बार पेशाब करते हैं और जब करते हैं तब वह घी ही निकलता है। उनके पेशाब करने का समय शाम को 5 बजे था उस समय सैंकड़ों दर्शक इस आश्चर्य को अपनी आँखों से देखने के लिए एकत्रित होते थे।

कराची में मुझे यह पता लगा था मैं वहाँ से शिकारपुर के लिए चल दिया, वहाँ से ढूंढ़ते ढूंढ़ते उन योगीराज के पास जा पहुँचा। शाम को चार बजे पहुँचा था, एक घंटे बाद ही पेशाब करने की बेला आ गई। अपने कमरे में से महात्माजी निकले। उनके आते ही कीर्तन आरम्भ हो गया। और तुरन्त ही पेशाब करने की तैयारियाँ होने लगीं। जिधर को मुँह किये बैठे थे उधर को योगीजी ने पीठ कर ली। दर्शकों में से जिसे आज्ञा प्राप्त हो चुकी थी, वह एक चाँदी का कटोरा हाथ लेकर महात्माजी के सामने पहुँचा। और कटोरे को आगे कर दिया, योगी जी उस कटोरे में पेशाब करने लगे, जब कर चुके तो वह कटोरा दर्शकों के सामने लाया गया। देखने में वह पिघले हुए शुद्ध घी की तरह था। जाड़े के दिन थे थोड़ी देर में ठंडी हवा लगते ही वह जमने लगा। अब योगिराज के सिंहासन के पास जो दस दस बड़े बड़े पीतल के दीपक, दीबटों पर सजाये हुए रखे थे उनमें यह घी डाला गया और बत्तियाँ डालकर दीपक जला दिये गये। सब लोग जय जयकार कर उठे। शंख, घड़ियाल, तुरही, नगाड़े आदि बजने लगे। कटोरे में बचा हुआ घी प्रसाद की तरह उंगली की नोक पर लिया देखा, सूँघा, परीक्षा करके सराहना की, और आँखों में लगाया। जितने भी दर्शक थे सबको पूरा पक्का विश्वास हो गया कि योगिराज पहुँचे हुए हैं, उनका आत्मा दिव्य है, शरीर दिव्य है और मलमूत्र तक दिव्य है। इस दिव्यता के कारण उन्हें जनता का धन और सम्मान प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता था।

अनेकों प्रपंचों में से पार निकलने के कारण मेरा मन बहुत संशयग्रस्त था। सोचता था कि कटोरे में या तो कोई पर्दा होगा या पेशाब को किसी प्रकार पलट कर घी डाल दिया जाता होगा पर जब आँखों से देखा वहाँ ऐसी कोई गुँजाइश न थी। क्योंकि योगी जी नंगे बदन रहते थे, कमर में एक छोटा सा कपड़े का टुकड़ा था, भरी सभा में पीठ फेर कर उसने पेशाब किया था, चाँदी का कटोरा सैंकड़ों हाथों में होकर गुजरा था, कहीं किसी बात में कोई रहस्य मालूम न पड़ता था। वह सचमुच आश्चर्यजनक बात थी, मनुष्य का मूत्र विशुद्ध घृत जैसा हो यह वास्तव में बड़े अचम्भे की बात थी।

पूर्ण सत्यता को जानने के लिए मैंने वहाँ अड्डा डालकर रहने का निश्चय किया। दर्शकों के चले जाने के बाद मैं योगिराज जी से मिला। योग मार्ग में मेरी रुचि, ऊंची विद्या, आकर्षक व्यक्तित्व, मृदुल स्वभाव इन सब बातों ने उनके ऊपर काफी प्रभाव डाला। ऐसे व्यक्तियों को अपने पास रखने में, उन्हें शिष्य बना लेने में साधु लोग अपना बड़ा लाभ देखते हैं, उनकी इस कमजोरी को भली भाँति जानता था इसलिए अपना परिचय और भावी कार्यक्रम उन्हें इस प्रकार बताया गया जिससे उनकी कृपा सहज ही मुझे प्राप्त हो गई। जिस कमरे में महात्माजी रहते थे उसके पीछे वाले कमरे में मुझे रहने को जगह देदी गई। मैं उससे सुख पूर्वक रहने लगा।

सत्यता की जाँच किस प्रकार हो ऐसे उपाय मैं खोजने लगा। जहाँ पेशाब किया जाता था वहाँ कोई चालबाजी न होती थी यह मैंने दो रोज में सब प्रकार जाँच लिया। एक दिन हाथ में कटोरा लेकर मैंने स्वयं पेशाब कराया मूत्रेन्द्रिय में घी निकलते मैंने खुद अपनी आँखों देखा था। यदि कोई गड़बड़ होती होगी तो वह उनके रहने के कमरे में ही की जाती होगी ऐसा विचार करके मैं ऐसा उपाय सोचने लगा जिससे उनके ऊपर निगरानी रखी जा सके। हर वक्त द्वारपाल रहता था, किन्तु बिना आज्ञा के किसी को उनके पास जाने की आज्ञा न थी कमरे में कोई अन्य दरवाजा या खिड़की न थी अब किस प्रकार सफलता मिले, इस ढूंढ़ खोज में मैंने योगी के कमरे के चारों ओर बड़े ध्यान पूर्वक कई चक्कर लगाये कि कोई मार्ग ऐसा मिले जिसे होकर कमरे की भीतरी बातें दिखाई दे सकें ऐसा कोई छिद्र दिखाई न पड़ा अब मैं अपने कमरे की छत पर चढ़ा और दूसरे कमरे के लिए छिद्र ढूंढ़ने लगा। सौभाग्य वश छत से नीचे एक छोटा रोशनदान मिला। खड़े होकर उसमें से योगी जी वाले कमरे का आधा भाग देखा जा सकता था। इस छिद्र में आँखें लगा कर पेशाब करने के दो घंटे पूर्व खड़ा हो गया और देखने लगा कि योगी जी कोई विशेष क्रिया तो नहीं करते हैं।

जब पाँच बजने में पन्द्रह मिनट बाकी रहे तो उन्होंने बोतल में रखी हुई एक पतली चीज निकाली उसे कटोरी में उड़ेला और मूत्रेन्द्रिय को उसमें डुबा दिया। उन्होंने चार पाँच लम्बे लम्बे सांसें खींचे और कटोरी खाली हो गई। कटोरी को एक ओर रखकर उन्होंने मूत्रेन्द्रिय को कुछ ऐंठ कर गाँठ सी बनाई और ऊपर से लंगोट कस कर बाँध लिया। इस क्रिया को करने के बाद वे दर्शकों के समक्ष चले गये। मैं भी चुपचाप छत पर से उतरकर उसी भक्त मंडली में एक ओर जा बैठा। नित्य का क्रम यथावत् चलने लगा।

अब घृत मूतने की दिव्य शक्ति का सारा रहस्य मेरी समझ में आ गया। हठयोगी आमतौर से वज्रोली क्रिया करते हैं, मूत्र मार्ग से जल ऊपर खींचना और फिर उसे निकाल देना वज्रोली क्रिया कहलाती है। यह कुछ भी कठिन नहीं है। हठ योग के अनेकों साधकों को हमने यह करते देखा था। थोड़े ही दिनों के प्रयत्न से अभ्यास हो जाता है। इसी क्रिया का अभ्यास इन योगी जी ने कर रखा था। वे पानी की जगह पर मूत्रेन्द्रिय से घी चढ़ा लेते थे, इन्द्रिय को ऐंठकर गाँठ सी बनाने और ऊपर से लंगोट कसने का प्रयोजन यह था कि चढ़ाया हुआ घी फैलने न पावे। पेशाब से निवृत्त होकर घी चढ़ाया जाता है जिससे कि कहीं घी और पेशाब मिल न जाएं।

रहस्य मालूम हो गया था तो भी उसकी एक बार पुष्टि करने की और आवश्यकता थी। दूसरे दिन जब वे योगीजी पाँच बजे जनता के सामने आये तो मैं अवसर पाकर उनके कमरे में चुपके से घुस गया और उस घी की भारी बोतल को अलमारी में से निकाल लाया, अलमारी ज्यों की त्यों बन्द कर दी। दूसरे दिन नियत समय पर जब कि महात्मा जी के आने की तैयारी हो रही थी, अचानक सन्देश आया कि योगी जी समाधि मग्न हो गये हैं वे आज दर्शन देने न आवेंगे। मैं समझ गया कि यह समाधि और कुछ नहीं घी की बोतल ठीक समय पर न मिलने और उसकी दूसरी व्यवस्था तुरन्त ही न हो सकने की समाधि है।

जानकारी पूरी हो गई। दूसरे दिन खिन्न चित, उदास चेहरा लेकर मैं वहाँ से चल दिया।

मूक प्रश्न बताने वाले ज्योतिषी।

मुख से बिना कहे पूछे जाने वाले प्रश्नों को मूक प्रश्न कहते हैं। अनेकों ज्योतिषी मूक प्रश्न बताते हैं हमें ऐसे ज्योतिषियों से कितनी ही बार काम पड़ा है। उनके भेदों को जानने में भी हमें असाधारण परिश्रम तथा काफी समय लगाना पड़ा है।

एक बार आगरा में एक ज्योतिषीजी आये बेलनगंज की धर्मशाला में ठहरे, शहर भर में मुनादी तथा इश्तहारों द्वारा सूचना कराई गई कि ज्योतिषीजी मूक प्रश्नों का उत्तर देते हैं हम भी पहुँचे। उनका तरीका यह था कि जो आदमी उनके पास जाय वह एक कागज पर अपना प्रश्न लिख कर अपने पास चुपचाप रखले, ज्योतिषीजी उस प्रश्न को भी बताते थे और उसका उत्तर भी देते थे। फीस हर प्रश्न की 2 थी। सवेरे से शाम तक पचास साठ प्रश्न पूछने वाले उनके पास पहुँचते थे। आसानी से सौ रुपये रोज की आमदनी हो जाती थी। प्रश्नों को प्रायः ठीक ही बता दिया जाता था।

बारीकी से देखने पर मालूम हुआ कि इस विद्या का रहस्य उस कापी में था जो वहाँ आमतौर से खुली हुई पड़ी रहती थी पाठक उसी के कागजों पर अपने प्रश्न लिखते थे और कागज फाड़ कर अपनी जेब में रख लेते थे। इस कापी में जो कोरे कागज थे वे चतुरता पूर्वक रासायनिक ढंग से बनाये गए थे। कागजों की पीठ पर बढ़िया साबुन घिस दिया गया था। पेन्सिल से लिखने पर कार्बन पेपर के रंग की भाँति कागजों की पीठ पर घिसा हुआ साबुन नीचे वाले कागज पर लग जाता था। कार्बन के लिखे हुए अक्षर नीले रंग के होने के कारण साफ दिखाई पड़ते हैं पर साबुन के अक्षर सफेद और हल्के होने के कारण दीखते नहीं पर उन्हें विशेष उपाय से पढ़ा जा सकता है। उस नकल आए हुए कागज पर राख, गुलाल, रामरज, गेरु का चूर्ण या कोई अन्य ऐसी ही बारीक पिसी हुई रंगीन चीज डाली जाय तो वे साबुन के स्थान पर वह चीज चिपक जाती है और अक्षर स्पष्ट रूप से पढ़े जा सकते हैं। या उस कागज को पानी में डुबो दिया जाय तो भी वे साबुन के अक्षर दिखाई दे सकते है। यही उन ज्योतिषीजी की विद्या थी इसी के बल पर वे कमाते खाते थे। थोड़े से परीक्षण से ही उनके इस रहस्य को मैंने जाँच लिया।

एक ऐसे ही ज्योतिषी से जबलपुर में भेंट हुई। उनका रहस्य यह था कि सादा कागज के टुकड़े काट कर रख देते थे, पेन्सिलें पड़ी रहती थीं। कागज पर पेन्सिल से लिखते समय कोई कड़ी चीज नीचे रखने की आवश्यकता पड़ती है, इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए वहाँ कितनी ही मोटी मोटी जिल्ददार किताब पड़ी थीं। जिल्दों के पुट्ठे के ऊपर एक हल्का कागज चढ़ाया हुआ था। उस कागज और पुट्ठे के बीच में कार्बन पेपर तथा सफेद कागज लगा रहता था। उस पुट्ठेदार किताब के ऊपर कागज रखकर जो कुछ लिखा जाता था उसकी नकल बीच के सफेद कागज पर कार्बन पेपर द्वारा हो जाती है। ज्योतिषीजी का सेवक उन पुस्तकों को वहाँ से ले जाता था और नकल वाला कागज निकाल कर पुस्तकों को वहीं रख जाता था, इस नकल को देखकर ज्योतिषीजी मूक प्रश्न बताते थे।

एक ज्योतिषी ने अपना अलग ही नया तरीका निकाला था, उससे बम्बई में भेंट हुई। प्रश्नकर्त्ता उसके सामने जाकर कुर्सी पर बैठता था, वह अपनी मेज के दराज में से एक स्लेट और पेन्सिल निकालता था, प्रश्नकर्त्ता की ओर देख-देख कर वह जल्दी-जल्दी सिलेट पर कुछ लिखता था और पूरी सिलेट लिख जाने पर उसे दराज में फिर रख देता था। अब प्रश्नकर्त्ता से बात चीत होती आप कहाँ से पधारे हैं? क्या काम है? आदि सारी बातें पूछते, जब वार्तालाप पूरा हो चुकता तो मेज के दराज में से सिलेट निकालकर प्रश्नकर्त्ता के हाथ में देते और पढ़ने को कहते। उस सिलेट में वहीं सब बातें लिखी होतीं जो प्रश्नकर्त्ता ने बताई थीं। ज्योतिषी कहता आपके आते ही बिना आपसे एक शब्द पूछे सारी बातें जान ली थीं और इस सिलेट पर लिख कर रख दी थीं। प्रश्नकर्त्ता बेचारा आश्चर्य में पड़ जाता और ज्योतिषीजी की विद्या से प्रभावित होकर उन्हें शक्तिभर भेंट दक्षिणा देता।

पता चलाने पर ज्ञात हुआ कि ज्योतिषीजी की बड़ी मेज के दोनों ओर जमीन तक जाने तक आने वाले बड़े-बड़े दराज थे, उसमें नीचे एक आदमी बैठा रहता था। ज्योतिषी आरंभ में जो कुछ लिखते वह व्यर्थ की कलम घिसावट थी। वैसी ही दूसरी स्लेट लिए एक आदमी दराज में बैठा रहता था और जो वार्तालाप दोनों में होता था उसे सुनकर तथ्य की बातें लिखता जाता था। वही स्लेट अन्त में प्रश्नकर्त्ता को दिखाई जाती । वह बेचारा समझता कि मेरी बातों से पूर्व ही यह स्लेट लिखी गई थी।

इस प्रकार के एक नहीं अनेकों ज्योतिषी, तेजी मंदी बताने वाले, भविष्यवक्ता देखे उनमें से मुझे किसी के पास भी कोई ठोस चीज न मिली। यों तो अटकल से दस बातें कही जाएं तो उनमें से पाँच छः ठीक निकलती ही हैं। इन ठीक निकली बातों को लेकर ज्योतिषी लोग अपनी विद्या का ढिंढोरा पीटते हैं और जो बातें गलत निकली थीं उनको दबा देते हैं।

भूतों के एजेन्ट।

भूतों के एजेन्ट गाँव गाँव मिल जाते हैं। जिन्हें सियाने, ओझा, भोपा आदि कहते हैं। यह लोग भूतों का अस्तित्व सिद्ध करने, उन्हें बुलाने, भगाने तथा उनके द्वारा कई प्रकार के कार्य कराने के करिश्मे दिखाते हैं। छोटे बालकों के दस्त, बुखार, अधिक रोना, हाथ पाँव मरोड़ना, आँखें न खोलना, उलटी सरीखे रोग भूत चुड़ैलों के आक्रमण समझे जाते हैं। अशिक्षित तथा अंध विश्वासी लोगों में ओझाओं द्वारा झाड़ फूँक करना ही इसका उपाय समझा जाता है। स्त्रियों का विशेष रूप से भूतों पर विश्वास होता है। उनके बहुत से रोग भूत बाधा माने जाते हैं, मृगी, बन्ध्यापन, गर्भपात, बच्चों का मर जाना, दूध न उतरना, दुःस्वप्न, मूर्छा आदि रोगों को भूत चुड़ैल का कारण समझा जाता है। आवेश युक्त अन्य रोग भी इसी श्रेणी में गिने जाते हैं- उन्माद, आवेश, भयातुरता, तीव्र ज्वर, तीव्र शूल आदि रोग चाहे वे पुरुष को हों चाहे स्त्री को भूतों के उपद्रव समझे जाते हैं। कंठमाला, विषबेल सरीखे फोड़े, सर्प का काटना यह भी प्रेतात्माओं से संबंधित समझा जाता है। सूने घर में चूहों द्वारा मचाई हुई खड़बड़ बिल्ली बन्दर आदि का कूदना कभी-कभी भूत बन जाते हैं। किसी मृत जानवर या मनुष्य की हड्डियों का फास्फोरस कभी कभी वायु के संस्पर्श से अचानक जल उठता है, केंचुए की मिट्टी का फास्फोरस जमीन पर प्रकाशवान हो उठता है चिड़िया अपने खाने के लिए केंचुओं को घोंसले में रख लेती हैं वहाँ भी फास्फोरस चमकने लगता है। इस प्रकार के प्रकाश भूतों की करतूत का प्रत्यक्ष प्रमाण बताया जाता है।

ऐसा ही कोई कारण उपस्थित होने पर इन सयाने लोगों का आह्वान किया जाता है। वे अपनी अलौकिकता को सिद्ध करने के लिए नींबू को चाकू से काटकर रस की जगह खून निकालना, लोटे में चावल भरना और उस भरे हुए लोटे को चाकू की नोक से चिपका कर अधर उठा लेना, कच्चे सूत के धागे पर तेल का भरा हुआ जलता दीपक उठाना, थाली में पानी भर कर उसमें दीपक रखना ऊपर से उलट मुँह मटकी रख देना और फिर थाली का पानी खिंचकर ऊपर मटकी में चढ़ जाना, लोटे में पानी भर कर एक हलके कपड़े से मुँह बाँध कर लोटे को उलटा लटका देना घड़े में से छनकर जरा भी पानी न फैलना आदि अनेकों प्रकार के चमत्कार दिखा कर अपने अन्दर अलौकिकता सिद्ध करते हैं, परन्तु वस्तुतः उनमें कोई चमत्कार नहीं होगा, यह बात साइंस, रसायन या चतुरता के ऊपर निर्भर होती है। देखने वाले उससे प्रभावित होते हैं और सयाने की योग्यता पर विश्वास करके उसको भेंट देने और उसकी इच्छानुसार कार्य करने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं।

स्त्रियों को भूतावेश बहुत आते हैं। इसका कारण मनोवैज्ञानिक है। उन्हें बुरी तरह परतंत्र रहना पड़ता है, घर के छोटे पिंजड़े में पर्दे के कठिन बन्धनों से जकड़ी हुई वे रहती हैं, मुद्दतों एक स्थान पर रहते रहते उनका मन ऊब जाता है, पिता के घर की याद आती है मैके जाने को जी भटकता है पर उनकी अपनी इच्छा का कोई मूल्य नहीं, ससुराल का अरुचिकर वातावरण, वहाँ वालों का दुर्व्यवहार आदि अनेक कारणों से स्त्रियों को मानसिक क्षोभ उत्पन्न होता है, वे भीतर ही भीतर घुटती हैं। मनोविज्ञान शास्त्र की दृष्टि से इस ‘घुटन’ का उनके ऊपर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। दबी हुई अतृप्त इच्छाएं किसी विस्फोट के लिए अवसर ढूंढ़ती रहती हैं। अनेकों स्त्रियों को हिस्टीरिया के दौरे आने लगते हैं। जिन परिवारों में भूत वाद पर विश्वास किया जाता है उनकी इस प्रकार की आत्म त्रास से पीड़ित स्त्रियाँ भूतों के बारे में सोचने लगती हैं और उन्हें भूत शिर आने लगते हैं। उनका विश्वास और आत्म त्रास मिलकर एक वास्तविक मानसिक रोग बन जाता है। यह रोग कभी कभी प्राणघातक भी सिद्ध होता है। नवयुवती स्त्रियाँ जब तक माता नहीं बनतीं तब तक उनको भूतावेश का भय अधिक रहता है, जब उनके बालक हो जाते हैं तो मस्तिष्क की दिशा दूसरी ओर मुड़ जाती है, ऐसी दशा में भूतोन्माद का भय बहुत ही कम रह जाता है।

रोग धीरे-धीरे समय पाकर अपने आप अच्छे होने लगते हैं, स्त्रियाँ सहानुभूति पाकर अपनी ओर लोगों का अधिक ध्यान आकर्षित होने पर एवं सयाने के उपचार से प्रभावित होकर अच्छी हो जाती हैं, आवेश उन्माद आदि भी समय पाकर ठीक हो जाते हैं, इसका श्रेय सयाने को मिलता है, उनकी रोजी चलती रहती है। भूतों की अनेकों कथाएं कही जाती हैं पर उन कथाओं की कड़ी जाँच करने पर मालूम होता है कि उनमें तीन चौथाई से अधिक तो बिलकुल कल्पित, मनगढ़ंत किंवदंतियां होती हैं। आश्चर्य एवं कौतूहल उत्पन्न करने के लिए कितने ही लोग कह देते हैं कि ऐसा हमने देखा था, पर असल में उनने देखा नहीं-सुना होता है, और उस सुनने के आधार का पता लगाने पर मालूम पड़ता है कि किसी ने यों ही गप्प उड़ा दी है। एक चौथाई से कम घटनाएं कुछ सार गर्भित होती हैं, उनके कारण किसी अन्य वैज्ञानिक तथ्य पर अवलम्बित होते हैं।

भूत उतारने वाले बड़े-बड़े प्रसिद्ध सयानों के यहाँ हम पहुँचे हैं। उनके प्रतिदिन दस बीस ऐसे रोगी पहुँचते और अच्छे होते थे। भूतों का आवेश बुलाना, रोगी पर चढ़े हुए भूत से बातें पूछना, भूत उतारने की क्रिया करना, यही सब व्यापार दिन भर उनके यहाँ होता था। एक ने तो बहुत बड़े लट्ठे में कितनी ही जंजीरें बाँध रखीं थीं उसका दावा था कि इस लट्ठे पर जंजीरों से उसने कितने ही बड़े-बड़े भूतों को बुला रखा है। इन भूत उतारने वालों में से प्रायः सभी से हमने विनय पूर्वक, सेवा से प्रसन्न करके, लोभ देकर, चुनौती से उत्तेजित करके यह प्रार्थनाएं कीं कि वे हमें भूत को दिखा दें या हमारे ऊपर भूतावेश बुला दें, पर उनमें से किसी ने भी यह छोटी सी प्रार्थना स्वीकार न की। यदि सचमुच इतने भूतों को यह लोग इधर से उधर करते हैं तो एक भूत हमारे ऊपर छोड़ देने में इनको क्या लगता था।

इतना तो माना जा सकता है कि जिन लोगों को किसी कारण वश भूतोन्माद है उन्हें मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में उस रीति से भी उपचार किया जा सकता है जिस रीति से कि सयाने लोग करते हैं। परन्तु सयानों में वस्तुतः भूत बुलाने, भगाने आदि की योग्यता होती है, यह नहीं कहा जा सकता। सयाने अपने ऊपर जो भूतावेश बुलाते हैं उसके वास्तविक होने में भी पूरा-2 सन्देह है। भूतों की सहायता से किसी को बीमार कर देने, मार डालने या लड़का उत्पन्न कराने की बात भी असत्य है। सयाने लोग अपनी प्रतिष्ठा एवं लाभ के लिए इस प्रकार के आडम्बर रचा करते हैं। अनेकों सयाने लोगों से मिलकर बातें करने और जाँच करने पर हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं।

एक नई किस्म के सुशिक्षित सयाने कुछ दिनों से और पैदा हुए हैं। इनका तरीका विलायती है। यह तरीका स्प्रिचुअलिज्म कहलाता है। अंग्रेजी में इस विषय पर कितनी ही पुस्तक हैं। देशी भाषाओं में भी थोड़ी बहुत पुस्तकें इस विषय पर मिल जाती हैं। यह लोग प्रेतों को बुलाते है और उनसे वार्तालाप करते हैं। इस तरीके के अनुसार प्रेत प्रायः लिखकर उत्तर देते हैं। कई आदमी गोल चक्र बाँधकर बैठते हैं बीच में एक मेज रख लेते हैं। अब कई तरीकों से प्रेतों से वार्तालाप किये जाते हैं। जैसे (1) ऑटोमेटिक राइटिंग द्वारा इस विधि में मन ही मन ऐसी भावना की जाती है कि हमारे ऊपर भूत आवेश आवे। थोड़ी देर में किसी के ऊपर आवेश आता है। उसको कागज और पेन्सिल दे दी जाती है, जो प्रश्न पूछे जाते है उनका वह आवेश मग्न व्यक्ति उत्तर लिखता है, इन उत्तरों को प्रेत का उत्तर समझा जाता है। (2) प्लेनचिट द्वारा—यह लकड़ी का एक टुकड़ा होता है जिसमें पहिए लगे होते हैं, इसमें एक छेद में पेन्सिल लगा दी जाती है और ऊपर कई व्यक्ति हाथ रखते हैं, थोड़ी देर में पहिया चलता है और पूछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्लेनचिट में लगी हुई पेन्सिल लिखने लगती है (3) तिपाही द्वारा—तीन पैर की मेज पर कई व्यक्ति हाथ रखकर बैठते हैं, थोड़ी देर में प्रेत के आने पर मेज के पाये उठने गिरने लगते हैं और खट खट होती है। इस खटखट की संकेत माला बना ली जाती है, और तार घर की डेमी की गर-गट्ट—ध्वनि से जिस प्रकार शब्द बनते हैं वैसे ही मेज के पायों की खटखट के संकेतों से मतलब निकालते हैं। इस प्रकार के और भी कई तरीके हैं।

इन तरीकों के बारे में कई संदेह उत्पन्न होते हैं। ऑटोमेटिक राइटिंग (स्वलेखन) के बारे में यह सन्देह उत्पन्न है कि जो विचार पेन्सिल से लिखे जाते हैं वह लेखक के अपने हैं, चाहे वे उसके स्वसम्मोहन के आवेश में लिखे हों या यों ही ठिठोली में। प्लेनचिट चलाने में या मेज के पाये खटकाने में चक्र में बैठा कुछ कोई व्यक्ति यह सब हरकतें कर सकता है। इस ओर ध्यान न दिया जाय तो भी जो उत्तर प्राप्त होते हैं वे सन्तोष जनक नहीं होते। ऐसी बात जिनकी जाँच नहीं हो सकती उनका वर्णन प्रेतों द्वारा मिलता है। जैसे परलोक कैसा है? वहाँ प्रेत लोग किस प्रकार रहते हैं? क्या खाते हैं? क्या करते हैं? आदि। इन प्रश्नों के जो उत्तर दिये जाते हैं उनकी सत्यता असत्यता के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। इसकी सचाई की जाँच का तरीका यह है कि ऐसे प्रश्न पूछे जायं जिनका ठीक उत्तर केवल उस स्वर्गीय आत्मा को ही मालूम हो, जिन बातों की जानकारी उस आवेश वाले व्यक्ति को किसी प्रकार होने का अन्देशा हो वह प्रश्न न पूछे जाएं। कभी-कभी कोई भुलावे में डालने वाले प्रश्न भी पूछे जाएं। ऐसे दो चार प्रश्न पूछते ही इन लोगों की कलई खुल जाती है और सारा खयाली महल ढह पड़ता है।

बम्बई के एक सुप्रसिद्ध प्रेत विद्या के ज्ञाता एक बार आगरा पधारे। उनका सार्वजनिक भाषण हुआ। एक प्रोफेसर साइब के यहाँ वे ठहरे हुए थे। हम कई मित्र उनसे मिलने गये। चक्र किया गया। हमारे साथ जो मित्र वहाँ मौजूद थे, उन्हीं के प्रेतात्मा बुलाई गई। वह आ गई और उत्तर देने लगी। हमारे पिताजी बुलाये गये और उनसे पूछा गया कि आप जब रामेश्वर यात्रा गये थे तब के कुछ संस्मरण सुनाइए। उन्होंने बहुत सारे संस्मरण सुनाये पर वास्तव में हमारे पिता जी कभी भी रामेश्वर न गये थे। तीसरे मित्र ने अपनी माताजी बुलाई और छोटी बहन के लिए कुछ संदेश माँगा। माताजी ने बहुत सी बातें अपनी बेटी के संबंध में कहीं, पर वास्तव में उनकी कोई बहिन न थी। तीनों ही प्रश्न गलत थे तीनों में से एक के लिए भी प्रेतों ने यह न कहा कि यह गलत है। बल्कि सविस्तार उत्तर दिये। इससे हम लोगों की आस्था उनके परलोक वाद पर से उठ गई। इसी तरीके को काम में लेकर हमने कितने ही चक्र करने वालों को छकाया। यह बुद्धि का युग है जब तक किसी बात को ठीक प्रकार प्रमाणित न कर दिया जाय, तब तक उस बात को विश्व समाज स्वीकार नहीं कर सकता।

भविष्य वक्ताओं की चतुरता

भविष्य वक्ताओं की अनेक श्रेणियाँ हैं। वे अनेक रीतियों से काम करते हैं। ज्योतिषी लोग पंचाँग, जन्मपत्र आदि में ग्रहण क्षेत्र देखकर, सगुनियाँ-स्वर तथा अन्य शकुनों को देख कर फल बताते हैं। चक्रों पर हाथ रखवा कर रमल के पाँसे डलवा कर हाथ देख कर सामूहिक विधि से भविष्य बताया जाता है। आवेश में आये हुए देवी देवता भी बताते हैं अमुक तिथि को इस प्रकार हवा चले, धूप निकले, पानी बरसे तो उसका वर्षा तथा फसल में भले बुरे होने का भविष्य किसान लोग अनुमान करते हैं। साँप के बोलने, गिरगिट के रंग बदलने, कुत्तों के रोने, आदि से आगे घटित होने वाली घटनाओं कर कुछ लोग अन्दाज लगाया करते हैं।

भविष्य पूछने वालों में आमतौर से वे लोग होते हैं जिन्हें वर्तमान में कोई विशेष चिन्ता होती है और भविष्य में उस चिन्ता से छुटकारा पाकर किसी आशामय परिस्थिति में प्रवेश करना चाहते हैं। आमतौर से खोई हुई वस्तुओं का पता पूछने वाले, खोये हुये बच्चे या घर से भागे मनुष्य की खोज करने वालों, विवाह के इच्छुक, सन्तान के अभिलाषी, परीक्षा फल जानने की तलाश करने वाले, नौकरी बदली, तरक्की पूछने वाले व्यापार की तेजी मंदी सट्टा दड़ा, आदि पूछने वाले होते हैं। जैसे वैद्य लोग बहुत दिन के अनुभव के बाद शकल सूरत और रंग ढंग देख कर बता देते हैं कि यह किस रोग का मरीज है और प्रायः बहुत अंशों में उनका अंदाज ठीक निकलता है उसी प्रकार भविष्यवक्ता लोग भी प्रश्नकर्ताओं के रंग ढंग, मुखमुद्रा आदि को देख कर यह सहज ही अन्दाज लगा लेते हैं कि वह क्या पूछना चाहता है। इस परख के आधार पर वे लोग सहज ही किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं और प्रायः बिना पूछे ही बात देते हैं कि प्रश्नकर्ता क्या पूछने आया है। बहुत से भविष्यवक्ता उस सीमा तक पहुँचे हुए नहीं होते वे प्रश्नकर्ता के अपना उद्देश्य प्रकट करने पर ग्रह, गणित या अन्य क्रिया कलाप करके उत्तर देते हैं।

उत्तर देते समय भविष्यवक्ता लोग ज्योतिष पर ही निर्भर नहीं रहते वरन् यह देखते हैं कि स्थिति क्या है? कैसी आशा है? जो परिस्थिति सामने है उस देखते हुए किस प्रकार की आशा है? इन अनुमानों की सूक्ष्म विवेचना करके जो उत्तर देते हैं उनके उत्तर प्रायः बहुत अंशों में ठीक उतरते हैं। उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हर एक बुद्धिमान मनुष्य अपनी विवेचना शक्ति के द्वारा बारीकी से सोचता है और अपनी दैनिक बातों के संबंध में आगे की बातों का अन्दाज लगाता है। और वह अन्दाज बहुत अंशों में ठीक भी होता है यदि ठीक न हो तो उसका कारोबार ठप हो जाय। जिस बुद्धि-सूक्ष्मता के आधार पर चतुर पुरुष अपने व्यवहारिक कार्यों में सफल होते हैं उसी बुद्धि सूक्ष्मता में ज्योतिषी लोग दूसरों के संबंध में अन्दाज लगाते हैं। वे अनुमान बहुत अंशों में ठीक उतरते हैं। ठीक उतरने पर वे सिद्ध समझे जाते हैं प्रशंसा के पात्र बनते हैं और धन लाभ करते हैं।

कभी-कभी बताये हुए उत्तर गलत भी हो जाते हैं क्योंकि अटकलें सदा ही ठीक नहीं उतरतीं। गलत निकली हुई बातों को यह कह कर टाल दिया जाता है, परमात्मा की इच्छा प्रबल है, भाग्य के लिखे को कोई मेट नहीं सकता बुरे दिन होने पर सोना पकड़ो तो मिट्टी हो जाता है, हमारी विद्या तो सत्य है पर उस विद्या के अनुसार निष्कर्ष निकालने वाले से भूल हो जाने पर उत्तर गलत हो जाते हैं, हम मनुष्य हैं, इसलिए हमसे भी भूलें होना स्वाभाविक है। इसके, अतिरिक्त जन्म समय ठीक न मालूम होने, प्रश्न करने के लिए प्रातःकाल आदि शुभ समय में न आने, प्रश्न पूछने के लिए आने के साथ फल, मिष्टान्न, दक्षिणा आदि माँगलिक चीजें पर्याप्त मात्रा में न लाने इत्यादि बहाने आसानी से बनाये जा सकते हैं।

सोना, चाँदी, रुई, तिलहन आदि की तेजी मंदी के सट्टे करने वालों का आधार कल्पनाशक्ति ही तो होती है। सटोरिये अन्दाज ही तब लगाया करते हैं कि आगे मन्दी आवेगी या तेजी जब उनका निशाना ठीक बैठ जाता है तो मालामाल हो जाते है नहीं तो दिवालिया बनते देर भी नहीं लगती। जैसे को तैसे साथी मिलते रहते हैं। अक्ल की फातियाँ उड़ाने वाले ज्योतिषी लोग उन्हें मिल जाते हैं। लगा तो तीर नहीं तो तुक्का बना बनाया है।

इन तेजी मंदी बताने वालों को चुनौती देते हुए एक बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति ने हमारे पास शर्तनामा भेजा है कि यदि कोई भविष्य वक्ता प्रति दिन केवल एक वस्तु की तेजी मंदी ठीक बतला दिया करे तो उसे केवल एक प्रश्न बताने के लिए एक हजार रुपया प्रति दिन दिया जायगा। इसके लिए वे एक वर्ष का वेतन एक हजार रुपया प्रति दिन के हिसाब से जमा कर देने और शर्तनामा अदालत में रजिस्ट्री करने को तैयार है। शर्तनामा हमने हिन्दुस्तान के प्रायः सभी ज्योतिषियों के पास भेजा है पर किसी ने भी उस चुनौती को अब तक स्वीकार नहीं किया है। और भविष्य में कोई उस चुनौती को स्वीकार करेगा ऐसी आशा भी नहीं है।

हम लोग देखते हैं कि यह लोग कुछ फीस या दक्षिणा लेकर तेजी मंदी आदि बताते हैं। इससे स्पष्ट है कि पैसे की इच्छा तो उनको है अब पैसे की आवश्यकता और इच्छा उनको है ही और तेजी मंदी आदि जानते ही हैं तो वे भी स्वयं ही सटोरिये बन कर मालामाल क्यों नहीं बन जाते? दूसरी बात यह है कि जब भविष्य सुनिश्चित है और उस भविष्य को वे जानते भी हैं तो फिर अपने बारे में भी जानते होंगे कि हमें कब कितनी आमदनी होगी यदि यह मालूम ही है कि इतना पैसा हमको अमुक समय मिल ही जायगा तो फिर ज्योतिष विद्या या और कोई व्यापार करने की उनको क्या आवश्यकता है? बैठे बैठे मौज करें जो भाग्य का होगा अपने आप आ जायगा। यह दोनों बातें बहुत ही सीधी एवं सरल हैं पर कोई भी भविष्यवक्ता इस मार्ग पर चलता दिखाई नहीं देता। इससे प्रतीत होता है कि किसी ज्योतिषी को स्वयं अपने ऊपर विश्वास नहीं है । ऐसी दशा में दूसरे विचार वाले लोग उन पर किस प्रकार विश्वास करें। यह एक प्रमुख समस्या है।

दिव्य दर्शी तान्त्रिक

अप्रत्यक्ष गुप्त बातों को जानने का दावा करने वाले अनेकों व्यक्ति हमारे क्षेत्रों में आये। मैस्मरेजम के नाम पर कितने ही लोग इस प्रकार के खेल करते हैं। एक बार हमने देखा कि एक मैस्मरेजम करने वाले ने एक लड़के की आँखों पर पट्टी बाँधी और ऊपर से कपड़ा डाल दिया । इससे किसी को यह सन्देह न रहे कि लड़का आँखों से देख सकता है अब जादूगर ने वहाँ उपस्थित लोगों के सम्बन्ध में उस लड़के से पूछना शुरू किया। चारों ओर जमा हुई दर्शकों की भीड़ में जादूगर चक्कर लगा रहा था। वह लोगों का छाता, घड़ी, अंगूठी, शरीर का कोई अंग कपड़ा आदि पकड़ता और उस लेटे हुए लड़के से पूछता यह क्या है? लड़का तुरन्त उत्तर देता—यह अमुक चीज है। पुस्तकों के पृष्ठ, भाषा घड़ियों का टाइम, रुपयों के सन् आदि अनेक बात पूछी गई और उनके ठीक ठीक उत्तर मिले। देखने वाले सभी लोग आश्चर्य में थे।

इस विद्या को जानने की हमें बड़ी उत्सुकता हुई। जिस जादूगर ने यह खेल दिखाया था उसके पीछे बहुत दिनों लगे रहे। पहले तो वह त्राटक आदि अभ्यासों में उलझा कर हमें टालता रहा पर पीछे उसकी मुँह माँगी दक्षिणा देने पर सब भेद बताया। रहस्य यह था कि एक लड़के को एक पाठ माला रटा ली जाती है। प्रश्न और उत्तर पहले से ही निर्धारित होते हैं। जैसे ‘यह क्या है?’ इस प्रश्न का उत्तर होगा- ‘छाता’। यह क्या चीज है? इस प्रश्न का उत्तर होगा- घड़ी। पूछने के शब्दों में थोड़ा हेर फेर करने से दर्शक तो कुछ समझ नहीं पाते पर वह लेटा हुआ लड़का भली प्रकार ध्यान रखता है और प्रश्न की भाषा के अनुसार उत्तर देता रहता है। ऐसी एक लम्बी प्रश्नोत्तरी हम अपनी ‘मैस्मरेजम की अनुभव पूर्ण शिक्षा’ पुस्तक में दे चुके हैं। इसके अतिरिक्त कोई भी चतुर व्यक्ति अपने ढंग की नई प्रश्नोत्तरी घड़ सकता है। इस विधि से केवल वही बातें बतलाई जा सकती हैं जो पूछने वाले को मालूम हों। जिन बातों का उत्तर उसे मालूम न होगा उसका उत्तर वह झूठ मूठ बेहोश होने का बहाना करके पड़ा हुआ लड़का भी न दे सकेगा।

नाखून पर स्याही लगा कर उसमें बालकों को देवी देवता दिखाने वाले तथा उनसे बात करा के प्रश्नों का उत्तर देने वाले हमने देखे हैं। इसी कार्य को कुछ लोग एक विशेष प्रकार की अ


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