जब ईसा यरुसलम से वापस लौटे तो उनके शिष्यों ने आवभगत की और अपनी-अपनी मनोभावनाएँ उनके सामने रखीं।
शिष्यों में से दो प्रमुख थे- जेम्स और योहत्रा। उनसे कहा- प्रभु यदि हमें प्यार करते हैं तो हमारा पद अपने समान ही ऊँचा कर दीजिए।
ईसा गम्भीर हो गये और कहा- बच्चों हर कोई स्वर्ग के राज्य में अपने ही प्रयत्नों से प्रवेश करता है। दूसरा कोई दूसरे के लिए कुछ नहीं कर सकता, ऊँचा बनने के लिए मत ललचाओ। छोटे बनकर रहो, विनीत बनो और प्रेम भरी सेवा को अपनी धर्म साधना बनाओ। जो नीचा छोटा बनता है वही तो ऊँचा पद पाता है।