दैवमाश्वासनामात्र दुःखे पेलव बुद्धिषु। समाश्वासन वागेषा न दैवं परमार्थतः॥
भाग्य की कल्पना कम बुद्धि वाले मनुष्यों को दुःख के समय पर केवल सान्त्वना देने के लिए ही है। दुःखियों को आश्वासन मात्र देने वाली वाणी के अतिरिक्त वस्तुतः भाग्य कोई वस्तु नहीं है।
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