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शरीर में काम करने वाली विद्युत शक्ति से ही दैनिक जीवन के विभिन्न क्रिया-कलाप पूरे होते हैं। इस संयंत्र के विभिन्न कलपुर्जे इसी शक्ति से प्रेरित होकर अपने-अपने काम करते हैं। इसकी अधिक मात्रा उत्पन्न की जा सके तो उसका लाभ दूसरों को भी दिया जा सकता है। धन-दान, रक्त-दान, अंग-दान आदि के द्वारा एक मनुष्य दूसरे को लाभान्वित कर सकता है। ठीक इसी प्रकार प्राण-दान भी सम्भव हो सकता है। अपनी जीवनी शक्ति का एक अंश दूसरों को देकर उनमें नव-जीवन का संचार अमुक मात्रा में किया जा सकता है। मैस्मरेज्म विद्या द्वारा शारीरिक और मानसिक चिकित्सा की जाती है और उसका लाभ औषधि उपचार से कम नहीं, वरन् अधिक ही मिलता है।
मनुष्य शरीर में रहने वाली विद्युत शक्ति का परिचय अब साधारण यन्त्र उपकरणों से जाँचा-परखा जा सकता है। वह एक अच्छा-खासा जनरेटर है। किसी-किसी में तो अनायास ही यह विद्युत प्रवाह बढ़ी-चढ़ी मात्रा में होता है। कई उसे प्रयत्नपूर्वक बढ़ा सकते हैं। बिजली से अनेकों प्रकार के प्रयोजन पूरे होते हैं । उसका उपयोग करके कई तरह के उपकरण क्रियाशील होते और लाभ उत्पन्न करते हैं। शरीरगत विद्युत से सम्पर्क क्षेत्र को किसी विशेष दिशा में उत्तेजित किया जा सकता है किन्हीं व्यक्तियों को प्रभावित करके उनके चिन्तन एवं चरित्र को मोड़ा जा सकता है। इतना ही नहीं उन्हें स्वास्थ्य, बल, ज्ञान, पराक्रम जैसी विभूतियों से लाभान्वित किया जा सकता है।
सूक्ष्म जगत में काम कर रही शक्तियाँ स्थूल पदार्थों को किस प्रकार प्रभावित करती है इसके उदाहरण आये दिन दीखते हैं। आकाश में उष्णता बढ़ते ही हमारे बर्तन गरम और ठण्डक का मौसम आते ही वे ठण्डे रहने लगते हैं। वर्षा ऋतु में हवा की नमी मात्र से घास-पात में हरियाली दौड़ जाती है। रेडियो और टेलीविजन के उपकरण अन्तरिक्ष में चल रहे सूक्ष्म प्रवाहों से प्रवाहित होते और अपने काम करते देखे जाते हैं। इसी सिद्धान्त के आधार पर मनोबल की शक्ति तरंगें आकाश में उड़ाई जा सकती हैं और उससे निकटवर्ती एवं दूरवर्ती व्यक्तियों तथा पदार्थों को प्रभावित किया जा सकता है।
मनुष्यों एवं प्राणियों की तरह ही मनोबल के द्वारा पदार्थों को भी प्रभावित किया जा सकता है। उन्हें हटाया, उठाया, हिलाया, गिराया जा सकता है। उनमें अन्य प्रकार की हलचलें एवं विशेषताएँ पैदा की जा सकती है। उनका स्वरूप तक बदला जा सकता है और गुण भी। आग और बिजली की सहायता से पदार्थों के आकार-प्रकार में परिवर्तन हो सकता है, ऐसा मनोबल के उपयोग से भी सम्भव है। कई चमत्कार, प्रदर्शनों में ऐसी घटनाएँ प्रयत्नपूर्वक प्रत्यक्ष की जाती है, जिनमें मनोबल ने जड़-पदार्थों में अस्वाभाविक हलचलें पैदा कर दीं अथवा उनके सामान्य क्रिया-कलाप को अवरुद्ध कर दिया। बिना प्रदर्शन के भी ऐसे घटना-क्रम सामान्य जीवन-क्रम में भी घटित होते रहते हैं, जिनमें व्यक्ति विशेष के सम्पर्क अथवा संकल्प के कारण वस्तुओं के स्वरूप एवं क्रिया-कलाप में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो गया। विद्युत प्रवाह की तरह ही यदि मनोबल को भी एक शक्ति धारा माना जा सके तो फिर उसके द्वारा सम्पन्न होने वाले क्रिया-कलापों को भी आश्चर्यजनक नहीं, वरन् सामान्य ही माना जायगा।
आग और गर्मी का अन्तर स्पष्ट है। आग प्रत्यक्ष है-स्थूल है। इसलिए उसे आँखों से देखा जा सकता है और इधर से उधर हटाया, जलाया, बुझाया जा सकता है। गर्मी सूक्ष्म है, व्यापक है। इसलिए उसे अनुभव तो किया जा सकता है, पर देखा नहीं जा सकता है । उसे हम पकड़ भी नहीं सकते और न धकेल सकते हैं। अधिक से अधिक कूलर आदि के द्वारा अपना कमरा ठण्डा रख सकते हैं, पर गर्मी की ऋतु ही बदल देना सम्भव नहीं। आग स्थूल है, इसलिए उसे जलाया भी जा सकता है और बुझाया भी। बिजली , भाप एवं ईंधन आदि के माध्यम से उत्पन्न होने वाली शक्ति का प्रत्यक्ष प्रयोग रोज ही होता है। इसलिए उसे हम सहज ही पहचानते हैं। मनोबल का सामान्य प्रयोग एक-दूसरे को प्रभावित करने भर से होता है, पर यदि उसे विकसित एवं व्यवस्थित स्थिति में किसी विशेष लक्ष्य के लिए प्रयुक्त किया जा सके तो प्रतीत होगा कि वह भी कितना शक्तिशाली है। उसके आधार पर व्यक्ति को ही नहीं पदार्थों और परिस्थितियों को भी प्रभावित किया जा सकता है।
एलेग्जेडिर राल्फ ने ‘द पावर आफ माइंड’ नामक पुस्तक में विभिन्न प्रमाण देते हुए लिखा है कि-‘‘प्रगाढ़ ध्यान-शक्ति द्वारा एकाग्र मानव-मन शरीर के बाहर स्थित सजीव एवं निर्जीव पदार्थों पर भी इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है।” राल्फ का कहना है कि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि इच्छा-शक्ति द्वारा स्थूल जगत पर नियंत्रण सम्भव है।
इलेक्ट्रानिक ब्रेन के निर्माण की प्रक्रिया में ज्ञात तथ्यों द्वारा वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि अवचेतन मन एक सशक्त कम्प्यूटर की तरह कार्य करता है और जिस तरह एक कम्प्यूटर की गई ‘फीडिंग’ के अनुसार ही क्रियाशील होता है, उसी तरह अवचेतन भी अपना आहार हमारे विचारों तथा संकल्पों से प्राप्त करता है। इस तरह अवचेतन की दिशा मनुष्य की इच्छाओं से ही प्रभावित होती है। स्पष्ट है कि इस विचेतन पर व्यक्ति प्रयास द्वारा पूर्ण नियन्त्रण पा सकता है और तब अभी अलौकिक लगने वाले काम कर सकता है।
व्यक्ति स्वयं अपना विद्युत-चुम्बकीय बल-क्षेत्र या गुरुत्वाकर्षण-क्षेत्र विकसित कर सकता है, ऐसा वैज्ञानिक मानने लगे हैं। पर उसका आधार एवं प्रक्रिया अभी तक वे नहीं जान पाये हैं। मनुष्य चलता-फिरता बिजली घर है। उसका भीतरी समस्त क्रिया-कलाप स्नायु जाल में निरन्तर बहते रहने वाले विद्युत प्रवाह से ही सम्पादित होता है। बाह्य जीवन में ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जो विभिन्न प्रकार की हलचलें होती हैं उनमें खर्च होने वाली ऊर्जा वस्तुतः मानव विद्युत-शक्ति ही होती है। रक्त जैसे रासायनिक पदार्थ तो मात्र उसके दिमाग में ईंधन भर का काम देते हैं।
रूसी सेना की सार्जेण्ट नेल्या मिरवाइलोवा अपनी इच्छा-शक्ति से स्थिर रखे जड़-पात्रों को गतिशील कर देती है, चलती घड़ी को रोक सकती है और पुनः चला सकती है। उसके द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले इन चमत्कारों को वैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा प्रामाणिक ठहराया जा चुका है।
शक्ति के बिजली, भाप, तेल जैसे साधनों में ही अब विचार-शक्ति को भी स्थान मिलने जा रहा है। अध्यात्म शास्त्र में तो आरम्भ से ही विचारों को ऐसा समर्थ तत्व माना है जो न केवल अपने उद्गमकर्ता को वरन् पूरे सम्पर्क क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। इतना ही नहीं उससे दूरवर्ती एवं अपरिचित प्राणियों तथा पदार्थों तक को प्रभावित किया जा सकता है।
टेलीपैथी के एक प्रयोगकर्त्ता इंग्लैण्ड के ए0 एन0 क्रीरी ने बहुत समय तक यह प्रयोग चलाया कि बन्द कमरे में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी प्राप्त की जाय। इस प्रयोग में एक महिला अधिक दिव्यदृष्टि सम्पन्न सिद्ध हुई।
क्रीरी ने अपने प्रयोगों की सचाई जाँचने के लिए अनेक प्रामाणिक व्यक्तियों से अनुरोध किया। जाँचने वालों में डबलिन विश्वविद्यालय के प्रो0 सर विलियम बेरट इंग्लैण्ड की सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च के प्रधान प्रो0 सिजविंग जैसे मूर्धन्य लोग थे। उन्होंने कई तरह से उलट-पलटकर इन प्रयोगों को देखा और उन प्रयोगों के पीछे निहित सच्चाई को स्वीकारा। इन प्रयोगों की जाँच का विवरण ‘विचार संप्रेषण समिति’ ने प्रकाशित किया है।
दूरवर्ती लोगों के मस्तिष्कों को प्रभावित करने और उनमें अभीष्ट परिवर्तन लाने की दिशा में आस्तिकों और नास्तिकों को समान रूप से सफलता मिली है। इन प्रयोगों में रूसी वैज्ञानिक भी योग-साधकों के पद-चिह्नों पर चल रहे हैं। लेनिन ग्राड विश्वविद्यालय के शरीर विज्ञानी प्रो0 लियोनिद वासिलयेव ने दूर संचार क्षमता का प्रयोग एक शोध कार्यों में निरत मण्डली पर किया। उसने अपने प्रयोगों द्वारा चालू शोध के प्रति धीरे-धीरे उदासीन होने और उसे छोड़कर अन्य शोध में लाने का प्रयोग चालू रखा और इसके सफल परिणाम पर सभी को आश्चर्य हुआ। लियोनिद ने अपना अभिप्राय गुप्त कागजों में नोट करके साथियों को बता दिया था कि वे अमुक शोध मंडली की मनःस्थिति में उच्चाटन उत्पन्न करके अन्य कार्य में रुचि बदल देंगे। कुछ समय में वस्तुतः वैसा ही परिवर्तन हो गया और उस मण्डली ने बड़ी सीमा तक पूरा किया गया अपना कार्य रद्द करके नया कार्य हाथ में ले लिया।
इतिहास, पुराणों की बात छोड़ दे तो भी प्रत्यक्ष दर्शियों की प्रामाणिक साक्षियों के आधार पर यह विश्वास किया जा सकता है कि विचार और शब्द के मिश्रण से बनने वाले मन्त्र प्रवाह का प्रयोग करके वातावरण तक में हेर-फेर करने की सफलता मिल सकती है।
अफ्रीकी जन-जातियों की तरह ही मलाया में भी मन्त्र विद्या के प्रयोग और चमत्कार बहुत प्रस्तुत होते रहते हैं। वहाँ के मान्त्रिक ऋतु परिवर्तन को भी प्रभावित करते देखे गये हैं।
एक और तीसरी घटना भी अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी रही है। ‘दि इंटर आफ दि ड्रगन’ फिल्म का शूटिंग वहाँ चल रहा था जिस दिन प्रधान शूटिंग होना था उसी दिन वर्षा उमड़ पड़ी, इस अवसर पर भी अब्दुला विन उमर नाम के मान्त्रिक की सहायता ली गई और शूटिंग क्षेत्र पूरे समय वर्षा से बचा रहा।
‘द रायल एस्ट्रोनामिकल सोसाइटी’ के तत्कालीन अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख लोगों ने श्री डेनियल डगलस होम की विलक्षण कलाबाजियों का आँखों देखा विवरण लिखा है। प्रख्यात वैज्ञानिक, रेडियो मीटर के निर्माता, थीलियम व गोलियम के अन्वेषक सर विलियम क्रुक्स ने भी श्री डेनियल डगलस होम का बारीकी से अध्ययन कर उन्हें चालाकी से रहित पाया था।
इन करिश्मों में हवा में ऊँचे उठ जाना, हवा में चलना और तैरना, जलते हुए अंगारे हाथ में रखना, आदि है। सर विलियम क्रुक्स अपने समय के शीर्षस्थ रसायन शास्त्री थे। उन्होंने भली-भाँति निरीक्षण कर श्री डी0डी0 होम की हथेलियों की जाँच की, उनमें कुछ भी लगा नहीं था। हाथ मुलायम और नाजुक थे। फिर श्री क्रुक्स के देखते-देखते श्री डी0डी0 होम ने धधकती अँगीठी से सर्वाधिक लाल चमकदार कोयला उठाकर अपनी हथेली में रखा और रखे रहे। उनके हाथ में छाले , फफोले कुछ भी नहीं पड़े।
‘रिपोर्ट आफ द डायलेक्टिकल सोसायटीज कमेटी आफ स्प्रिचुअलिज्म’ में लार्ड अडारे ने भी श्री होम का विवरण दिया है। आपने बताया कि एक ‘सियान्स’ में वे आठ व्यक्तियों के साथ उपस्थित थे। श्री डी0डी0 होम ने दहकते अँगारे न केवल अपनी हथेलियों पर रखे, बल्कि उन्हें अन्य व्यक्तियों के भी हाथों में रखाया। सात ने तो तनिक भी जलन या तकलीफ के बिना उन्हें अपने हाथ में रखा। इनमें से 4 महिलाएँ थी। दो अन्य व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सके। लार्ड अडारे ने ऐसे अन्य अनेक अनुभव भी लिखे हैं, जो श्री होम की अति मानसिक क्षमताओं तथा अदृश्य शक्तियों से उनके सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हैं। इनमें अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में कमरे की सभी वस्तुओं का होम की इच्छा मात्र से थर-थराने लगना, किसी एक पदार्थ (जैसे टेबल या कुर्सी आदि) का हवा में चार-छह फुट ऊपर उठ जाना और होम की इच्छित समय तक वहाँ उनका लटके रहना, टेबल के उलटने-पलटने के बाद भी उस पर सामान्य रीति से रखा संगमरमर का पत्थर और कागज पेन्सिल का यथावत बने रहना आदि है।
सर विलियम क्रुक्स ने भी एक सुन्दर हाथ के सहसा प्रकट होने, होम के बटन में लगे फूल की पत्ती को उस हाथ द्वारा तोड़े जाने, किसी वस्तु के हिलने, उसके इर्द-गिर्द चमकीले बादल बनने और फिर उस बादल को स्पष्ट हाथ में परिवर्तित होने तथा उस हाथ को स्पर्श करने पर कभी बेहद सर्द, कभी उष्ण और जीवित लगने आदि के विवरण लिखे हैं।
विचारों की शक्ति का सामान्य जीवन में भी महत्वपूर्ण उपयोग होता रहता है। उन्हीं के आधार पर क्रिया-कलाप बनते हैं और तदनुरूप परिणाम सामने आते हैं। बहिरंग व्यक्तित्व वस्तुतः मनुष्य के अन्तरंग की प्रतिक्रिया भर ही होता है। विचारों से समीपवर्ती लोग सहयोगी विरोधी बनते हैं। निन्दा और प्रशंसा के आधारों की जड़े अन्तः क्षेत्र में ही गहराई तक धँसी होती हैं। सामान्य स्तर की विचार-शक्ति भी जीवन का क्रम बनाती है, तो फिर विशेष स्तर की विचार-शक्ति जो योगाभ्यास के साधना विज्ञान के आधार पर तैयार की जाती है, चमत्कारी परिणाम उत्पन्न कर सके तो इसे अबुद्धि सम्मत नहीं कहा जा सकता । मन्त्र शक्ति के प्रयोगों में जहाँ दंभ और बहकावे की भी भरमार रहती है वहाँ ऐसे प्रामाणिक प्रसंगों की भी कमी नहीं होती जिनके आधार पर इस अलौकिकता का आधार समझ में न आने पर भी उसे अविश्वस्त नहीं कहा जा सकता ।
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किन्हीं व्यक्तियों में वस्तुओं को विचार-शक्ति से प्रभावित करने की क्षमता अनायास ही पाई जाती है। उन्होंने कोई योगाभ्यास नहीं किया तो भी वे अदृश्य को देख सकने-अविज्ञात को जान सकने में समर्थ रहे। ऐसी विलक्षणता हर मनुष्य के अचेतन मन में मौजूद है। मानवी विद्युत सामान्यतया दैनिक क्रिया-कलापों में ही खर्च होती रहती है। पर यदि उसे बढ़ाया जा सके तो कितने ही विलक्षण कर्म भी हो सकते हैं। साधना से दिव्य क्षमता बढ़ती है और उससे कितने ही प्रकार के असामान्य कार्य कर सकना सम्भव होता है। यह आध्यात्मिक उपलब्धियाँ अगले जन्मों तक साथ चली जाती है। ऐसे लोग बिना साधना के भी पूर्व संचित सम्पदा के आधार पर चमत्कारी आचरण प्रस्तुत करते देखे गये हैं। ऐसे ही लोगों में एक नाम ‘यूरीगेलर’ का भी है।
अंग्रेजी भाषा की वैज्ञानिक पत्रिकाएँ ‘नेचर’ और ‘न्यू साइंटिस्ट’ विश्व विख्यात हैं। उनका सम्पादन और प्रकाशन विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों द्वारा होता है और उनमें प्रकाशित विवरणों को खोज युक्त एवं तथ्यपूर्ण माना जाता है। इन्हीं पत्रिकाओं में ‘यूरीगेलर’ के शरीर में पाई गई अतीन्द्रिय शक्ति के प्रामाणिक विवरण विस्तारपूर्वक छपे हैं।
उसने खुले मैदान में बिना किसी पर्दे या जादुई लाग लपेट के हर प्रकार के सन्देहों का निवारण का अवसर देते हुए अनेक प्रदर्शन किये हैं। किसी को किसी चालाकी की आशंका हो तो वह अवसर देता है कि तथ्य की किसी भी कसौटी पर जाँच लिया जाय। उसे जादूगरों जैसे करिश्मे दिखाने का न तो अभ्यास है न अनुभव। ‘सम्मोहन’ कला उसे नहीं आती। जो भी वह करता है स्पष्टतः प्रत्यक्ष होता है। स्टैनफोर्ड रिसर्च इन्स्टीट्यूट द्वारा आयोजित परीक्षण गोष्ठियों में मूर्धन्य वैज्ञानिकों के सम्मुख वह अपनी कड़ी परीक्षा में पूर्णतया सफल होता रहा है। जर्मनी और इंग्लैण्ड के प्रतिष्ठित पत्रकारों के सम्मुख उसने प्रदर्शनों को दिखाया गया है।
यूरीगेलर दूर तक अपनी चेतना को फेंक सकता है। वहाँ की स्थिति जान सकता है। इतना ही नहीं प्रमाण स्वरूप वहाँ की वस्तुओं को भी लाकर दिखा सकता है। उससे जब ब्राजील जाने और वहाँ की कोई वस्तु लाने के लिए कहा गया तो उसने वैसा ही किया और वहाँ का विवरण सुनाने के साथ-साथ ब्राजील में चलने वाले नोटों का एक बण्डल भी सामने लाकर रख दिया।
पूछने पर गैलर ने बताया है कि यह क्षमता उन्हें बिना किसी प्रयास के अनायास ही मिली है। इन प्रदर्शनों में उन्हें तन्त्र-मन्त्र आदि कुछ नहीं करना पड़ता। अदृश्य दर्शन के समय वे अपनी दृष्टि सीमित रखने के लिए एक साधारण-सा पर्दा खड़ा कर लेते हैं और उसी पर उतरते चित्रों को टेलीविजन की तरह देखते रहते हैं।
उसकी अदृश्य दर्शन की शक्ति भी अद्भुत है। उसकी माता को जुए का चस्का था। जब वह घर लौटती तो गैलर अपने आप ही बता देता कि वह कितना पैसा जीती या हारी है।
इसकी अतीन्द्रिय विशेषताओं का परीक्षण वैज्ञानिकों और अन्वेषकों की मण्डलियों के समक्ष कितनी ही बार हुआ है और वह निभ्रान्त सिद्ध हुआ है।
उपरोक्त घटना का उल्लेखक डॉ0 नन्डोर फोदोर ने अपने ग्रन्थ ‘बिटविन टू वर्ल्डस’ पुस्तक में किया है।
प्रत्यक्ष क्षमता और सम्पदा का प्रभाव सभी को विदित है, पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि विचारों की सामर्थ्य का मूल्य महत्व भी किसी से कम नहीं है। उसे बढ़ाने के लाभों को समझा जा सके तो प्रतीत होगा कि साधना प्रयोजनों में लगने वाली शक्ति मनुष्य को सूक्ष्म विभूतियाँ और स्थूल सफलताओं से परिपूर्ण बना सकने में अत्यधिक सहायक सिद्ध होती है। अस्तु उस उपार्जन में संलग्न होना भी दूरदर्शी बुद्धिमत्ता का चिन्ह है।
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