
Spiritual Science of Sex- Element
हम सुख-शांति से वंचित क्यों हैं ?
सुख और दुःख क्या है ?
सुख और दुःख का अपना कोई अस्तित्व नहीं है । इनका कोई सुनिश्चित ठोस, सर्वमान्य आधार भी नहीं है । सुख-दुःख मनुष्य की अनुभूति के ही परिणाम हैं । इसकी मान्यता कल्पना एवं अनुभूति विशेष के ही रूप में सुख-दुःख मनुष्य के मानस पुत्र हैं, ऐसा कह दिया जाए तो कोई अत्युक्ति न होगी । मनुष्य की अपनी विशेष अनुभूतियाँ मानसिक स्थिति में ही सुख-दुःख का
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सत्य को पूर्वाग्रहों में न बाँधें
सूरज इतना छोटा नहीं है कि उसे एक छोटे कमरे में बंद किया जा सके ।। समग्र सत्य इतना तुच्छ नहीं है कि किन्हीं मनुष्यों का नगण्य- सा मस्तिष्क उसे पूरी तरह अपने में समाविष्ट कर सके ।। समुद्र बहुत बड़ा है, उसे चुल्लू में लेकर हममें से कोई भी उदरस्थ नहीं कर सकता ।। सत्य को जितना हमने जाना है, हमारी समझ और दृष्टि के अनुसार वह सत्य हो सकता है- उस पर श्रद्धा रखने का हर एक को अधिकार है किंतु इससे आगे
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