वसंत आगमन के साथ प्रकृति अँगड़ाई लेकर उत्साह, उमंग और उल्लास प्रदर्शित
करती है । वृक्षों की नवकलिकाएँ प्रस्फुटित होकर नवपल्लवों एवं पुष्पों से
प्रकृति का श्रृंगार करती हैं । मानव-जीवन की अवधि भी शिशु बालक, किशोर,
युवा, वयस्क, प्रौढ़ एवं वृद्ध अवस्थाओं में विभाजित की गई है । युवावस्था
जीवन का वसंतकाल है । इस अवस्था में शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ विचारों
एवं भावनाओं में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है । परिवर्तन के ये क्षण
भावी जीवन को सुधारने और बिगाड़ने दोनों का कार्यकर सकते हैं । इस संक्रमण
काल में युवाओं को सही दिशा, मार्गदर्शन, प्रेरणा एवं प्रोत्साहन की
आवश्यकता होती है, ताकि राष्ट्र की युवाशक्ति दिग्भ्रमित न हो । वह विध्वंस
में न लगकर सृजन में लगे । यह पुस्तक इसी उद्देश्य की पूर्ति करेगी और
युवाशक्ति को युग के सृजन में नियोजित करेगी । आत्मीय पाठक बंधुओं से
निवेदन है कि इस पुस्तक की अधिकाधिक प्रतियाँ मँगाकर युवा वर्ग में
पहुँचायी जाएँ ।