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Akhand Jyoti
Year 2008
Version 1
चित्त की विकृतियाँ...
चित्त की विकृतियाँ ही जीवन की भ्रान्तियाँ हैं
July 2008
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Page Titles
पूर्णता का प्रत्यावर्तन
समस्याएँ आज की, समाधान कल के
नारी जागरण के अध्र्वयु
सौर कलंकों एवं ज्वालाओं से हम सब होंगे प्रभावित
मानवी काया एक सशक्त चुम्बक
सफलता के नए मानदण्ड-कुछ स्वर्णिम सूत्र
चित्तशुद्धि के साथ भाव व ज्ञान भी परिपक्त होते हैं
जीवन के परिष्कार का आध्यात्मिक प्रयोग गायत्री साधना
आदिशक्ति की लीलाकथा-१९ : 'तत्सवितुर्वरेण्यं' का मर्म
झूठ का सहारा न लें, अप्रिय सत्य भी न बोलें
ध्यान एवं योगनिद्रा से मनःशक्तियों का जागरण
'इस युग की चेतनात्मक जगत की सबसे बड़ी क्रान्ति
भीड़ से बचें, अपने अन्दर की यात्रा करें
नकारात्मकता से दूषित हमारा विचारमण्डल
सतत श्रेष्ठ चिन्तन, शुभकर्म एवं उदात्त व्यवहार की नीति
प्रत्यक्ष से भी परे और महत्त्वपूर्ण है परोक्ष
गायत्री के देवता सविता का करें नित्य ध्यान
आर्युवेद-६२ : स्वस्थवृत्त का विज्ञान : आर्युवेद में जल का महत्त्व
चित्त की विकृतियाँ ही जीवन की भ्रान्तियाँ हैं
भविष्य हेतु गढ़ जा रहे थे हनुमान
योगचिकित्सा-१९ :पथरी की बीमारी का योगोपचार
यज्ञ एक शिक्षण भी, उच्चस्तरीय विज्ञान भी
युगगीता-१०२ : हमें निश्चित करना है कौन सा मार्ग अपनाएँ
चेतना की शिखर यात्रा-७४ : साधना और संजीवनी
कुछ आप कहें कुछ हम
तपोनिष्ठ जीवन की योग्यता अर्जित कर प्रवेश लें (विवि-४१
शताब्दी वर्ष की उलटी गिनती आरम्भ
आवसर खोने की वेला कविता
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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