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Akhand Jyoti
Year 2007
Version 1
युगगीता-९२ : तस्मात्...
युगगीता-९२ : तस्मात् सवेर्षु कालेषु माम् अनुस्मर युध्य च
September 2007
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Page Titles
परमात्मा की प्रतीति
अभी न चेते तो प्रलय सुनिश्चित
अन्नमय कोश के परिष्कार से प्राप्त होंगी दिव्य उपलब्धियाँ
प्राणऊर्जा का सम्वर्द्धन-तेजस्वी जीवन
इक्कसवीं सदी की सबसे गम्भीर समस्या से कैसे जूझें
भक्तिगाथा-२० : माँ के विस्मरण से हो व्याकुलता तो वह है भक्ति
आइए, चलें इनसानियत के पथ पर
भविष्य दर्शन ने बचाई व्यापक जनहानि
भवानी को अपिर्त करें भावों का अघ्यर्
'वरेण्यं' शब्द का दिव्य रहस्य
अद्भुत रहस्यों से भरा वनस्पति जगत
पवित्र भाव से प्राथर्ना करती है चमत्कार
साधना से सिद्धि का रहस्य : परिष्कृत भावनाएँ
आइर् है राष्ट्र के लिए मर मिटने की बारी
हमारे अपने ही अन्दर छिपा ऊजार् का भाण्डागार
आहार हमारा कैसा हो ताकि हम स्वस्थ रहें-५
माँ सदैव तैयार है अपने बच्चों का कष्ट बाँटने को
सूक्ष्म हुए कमर्बीज हो सकते हैं नष्ट
देवशक्तियों के अवतरण का निश्चय
योगचिकित्सा-९ : आन्त्रशोथ एवं अल्सरेटिव कालाइटिस का योगोपचार
चेतना की शिखर यात्रा-६४ : अभिभावक योग का आरम्भ-३
युग साधना में भागीदारी की दावत-१
युगगीता-९२ : तस्मात् सवेर्षु कालेषु माम् अनुस्मर युध्य च
उपचार, शिक्षण एवं शोध हेतु पॉलीक्लिनिक का शुभारम्भ
उपचार, शिक्षण एवं शोध हेतु पॉलीक्लिनिक का शुभारम्भ
कुछ आप कहें कुछ हम
शताब्दी वषर् की उलटी गिनती आरंभ-९
शिक्षक दिवस कविता
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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