Loading...
All World
Gayatri Pariwar
Get App
Books
Magazine
Language
English
Hindi
Gujrati
Kannada
Malayalam
Marathi
Telugu
Tamil
Stories
Collections
Articles
Open Pages (Folders)
Kavita
Quotations
Visheshank
Quick Links
Book Catalog
Whats New
Downloads
Write to Us
Login
Akhand Jyoti
Year 2007
Version 1
परमाथर् में ही...
परमाथर् में ही छिपा है स्वाथर्
July 2007
<<
|
<
|
|
>
|
>>
<<
|
<
|
|
>
|
>>
Write Your Comments Here:
Page Titles
सद्गुरु की खोज
आअो खोलें अन्तस् का द्वार
अखिर यह मन भटकता क्यों है
अविज्ञात का द्वार, जादू का पिटारा हमारा मस्तिष्क
प्रकृति के हर घटक की रक्षा का हम व्रत लें
भक्तिगाथा-१८ ः कथा का श्रोता भावविभोर होकर सुने
ब्रह्माण्डीय शक्ति से सम्पकर् जोड़ते हैं हमारे चक्र
आदिशक्ति की लीलाकथा-७ ः पवित्र अन्तःकरण वाले ही शक्ति के पात्र बनते हैं
आखिर कैसे जोड़ती हैं भाव तरंगें मानवीय मनों को
सच्च्िान्तन करेंगे तो सपने भी अच्छे आयेंगे
महाकाव्य जीवन्त बनाते हैं हमारी सम्वेदना को
गायत्री मन्त्र के तत् शब्दि का विवेचन
महानगरों को माँद न बनने दें
नारी उत्कषर् के लिए महिला वानप्रस्थों की आवश्यकता
आयुवेर्द-५० ः आहार हमारा कैसा हो ताकि हम स्वस्थरहें
योग ारा पाचन संस्थान के रोगों का उपचार
द्वेष साधक के लिए नरक का द्वार है
गुरुपवर् विशेष ः सभी शिष्यों को मिले पूणर्ता का वरदान
मूच्छिर्त के लिए एक सञ्जीवनी सुधा
अभिभावक योग का आरम्भ
परमाथर् में ही छिपा है स्वाथर्
युगगीता-९० ः हम भी देहधारियों में श्रेष्ठ नर बनें
कुछ आप कहें कुछ हम
युगनिमार्ण योजना, दशर्न, स्वरूप एवं कायर्क्रम
अनुशासन एवं समपर्ण की धुरी पर खड़ा यह तन्त्र (विवि-२९
शताब्दी वषर् की उलटी गिनती आरम्भ
युगऋषि की वन्दना कविता
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
See More