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Akhand Jyoti
Year 2005
Version 1
युगगीता-६६ : अभ्यासेने...
युगगीता-६६ : अभ्यासेने तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते
June 2005
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Page Titles
स्वर्ग-नरक
इक्कीसवीं सदी में आध्यात्मिक संप्रेषण
आत्मा और परमात्मा का योग परम पुरुषार्थ
बीतराग तथागत प्राप्त हुए बुद्धत्व को
सिद्ध साधकों के लिए अनुबन्ध-कुछ श्र्:तें
गायत्री साधना से दिव्यदृष्टि का जागरण
ग्रह ज्ये:तिष का चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से अध्ययन
आइए, हम भी अपनी छठी इन्दि:रय विकसित करें
शर्त और शिकवा से मुक्ति पाने का राजमार्ग
पंचमहाया पाँच देवों का पूजन
आधुनिक जीवनशैली से अभिशप्त हमारी भावी पीढ़ी
लें विज्ञापन के आत्मघाती मनोविज्ञान से टक्कर
गायत्री जयन्ती विशेष : ज्ञानगंगा पुण्यतोया भागीरथी अवतरण का महापर्व
स्वास्थ्य संरक्षण की यज्ञोपचार प्रक्रिया-५
ध्यान से उत्पन्न होती है अतीन्दि:रय सम्वेदना
गुरुगीता-३३: सत चित आनन्दमयी सदगुरु क सत्ता
आत्मदेव की साधना आराधना-२
चेतना की शिखर यात्रा-३८ : परिक्रमा के पथ पर-२
युगगीता-६६ : अभ्यासेने तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते
एक साहसिक यात्रा का आरम्भ
गुरुसत्ता की लेखनी से जाने युग परिवर्तन के मर्म को
महान अभियान की विराट यात्रा हमारा सौभाग्य तथा दायित्व
गुरु गायत्री गुरु भगवान है कविता
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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