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Akhand Jyoti
Year 1999
Version 1
जागरण-प्रण है साधना...
जागरण-प्रण है साधना यह (कविता) -शचीन्द्र भटनागर
February 1999
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प्रखर साधना वर्ष १९९९
साधकों के अन्तर्जगत पर छा रहा है वासंती उल्लास
युग संध्या के परिपेक्ष्य में साधकों से अपेक्षाएँ
आद्यशक्ति की अनुकम्पा से ऐसे बरसी
समय की विषमता- सामूहिक साधना की अनिवार्यता
महाकाल की महायोजना
भारत भूमि बनेगी एक तपोभूमि
महायोगी , जिसकी तपशक्ति ने राष्ट्र में नये प्राण फूँके
प्रत्येक गाँव एक तीर्थ बने
देवालय इस वर्ष साधना केन्द्रों के रुप में विकसित हों
अद्भुत ग्रहयोग- अनूठा पुरुषार्थ
सदाचरण ही साधना की सफलता का आधार
दैवी पुरुषार्थ से ही होगा सामूहिक पापों का प्रक्षालन
महासाधना से सौरशक्ति का संदोहन
युगपुरुष की लेखनी से
उज्ज्वल भविष्य लाने वाला महापुरुषार्थ
दैवी प्रकाश उतारेगा हर साधक के अंतस में
परोक्ष के परिशोधन हेतु इस वर्ष का प्रचण्ड तप
शास्त्रार्थ , जिसकी परिणति हुई साधना के भारतव्यापी विस्तार में
कौन देंगे लोकजीवन को सच्चा नेतृत्व
व्यक्तिगत जीवन की भगवान महाकाल के साथ साझेदारी
विचार परिष्कार हेतु अनिवार्य है नियमित स्वाध्याय
हर साधक की इन महाक्रान्तियों में भागीदारी हो
गुरुसत्ता की चेतना से जोड़गा यह महाप्रयोग
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
वसंत पर्व पर एक साधक की अनुभूति
अपनों से अपनी बात-१, प्रखर साधना वर्ष की युगवसंत से शानदार शुरुआत
अपनों से अपनी बात-२, इस वसंत से नवयुग की गंगोत्री में भी अखण्ड जप का शुभारंभ
जागरण-प्रण है साधना यह (कविता) -शचीन्द्र भटनागर
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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