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Akhand Jyoti
Year 1998
Version 1
अपनों से अपनी...
अपनों से अपनी बात-१ महाकुम्भ की पावनवेला में आगामी विशिष्ट सत्रों की शृंखला
April 1998
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Page Titles
प्रज्ञावतार की पुण्यवेला
युगसंधि की विशिष्ट अवसर- परिवर्तन का महापर्व
युग परिवर्तन का ठीक यही उपयुक्त समय
सृष्टिकर्म में स्रष्टा की अवतरण प्रक्रिया
युगावतार-प्रज्ञावतार
यदा यदा ही धमर्स्य........
युगसंधि का आरम्भ, मध्य और अन्त प्रसिद्ध ज्योतिवदों की दृष्टि में
मूधर्न्यों के अभिमत एवं अतंग्रर्ही प्रभावों की प्रतिक्रिया
मनुष्य जाति पर गहराते संकट के बादल
आस्था संकट की विभीषिका और उससे निवृत्ति
युद्धलिप्सा कितनी घातक हो सकती है
समस्त समस्याओं के समाधान का सुनिश्चित आधार
श्रद्धा और विवेक का संगम ही करेगा युगपरिवर्तन
अवतार के प्रकटीकरण के पर्याप्त प्रमाण
नवयुग का आधार-श्रद्धा-संवर्द्दान्
प्रज्ञावतार का महाप्रयास
कल्पवृक्षों की नई पौध उग रही है
युगदेवता की दो प्रत्यक्ष प्रेरणाएँ
युगशक्ति का अवतरण-नवयुग के अभ्युदय के लिए
संक्रान्ति काल एवं इष्ट का वरण
विशिष्ट प्रयोजन के लिए विशिष्ट आत्माओं की विशिष्ट खोज
युग परिवर्तन में अन्तरिक्षविज्ञान का उपयोग
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- प्रज्ञावतार की सत्ता का आश्वासन
अपनों से अपनी बात-१ महाकुम्भ की पावनवेला में आगामी विशिष्ट सत्रों की शृंखला
अपनों से अपनी बात-२ भावी आयोजन अब इस रूप में संभव है
अपनों से अपनी बात-३ नयी भूमि में क्या बनने जा रहा है, क्या संकल्पना है?
माटी का सन्देशा (कविता) -बलराम सिंह परिहार
किसी भ्रान्ति में न रहें, क्रान्ति होकर रहेगी
नादब्रह्म जिनकी सिद्धि थी
भाव संवेदना के जागरण की बात अब वैज्ञानिकों के मुख से सुनें
यह दुनिया बन रही है एक पागलखाना
कद नहीं, हमारे आदर्श ऊँचे बनें
चलें बर्बर समाज से शान्ति-करुणा के साम्राज्य की ओर
जिनकी हर श्वास राष्ट्र की स्वतंत्रता हेतु थी
सबसे प्यारा, सबसे न्यारा, भारत वर्ष हमारा
ब्राह्मणत्व की कसौटी पर वे खरे उतरे
वृक्ष-वनस्पतियों में भी होती है संवेदनशीलता
जहाँ बाँस के फूल विभीषिका का संकेत बनकर आते हैं
अपने आप से पूछिए ये तीन प्रश्न्न
देते रहने का आनन्द ही कुछ और है
रहस्यमय वह हवेली और विचित्रता भरी वह रात्रि
अंततः एक दुर्योग टला
एक जाग्रत् वीर बलिदानी
परिवार में स्वर्ग जैसा वातावरण कैसे?
अपने आपको स्वयं ही साधिए
कृत्रिम जीवनशैली जन्म देती है कैंसर को
शरीर से कुरूप भले ही हों, चरित्र सुन्दर होना चाहिए
भारतीय तत्त्वदर्शन के अध्येता महामनीषी अलबेरुनी
संघर्ष, सतत संघर्ष ही सफलता का मूलमंत्र
पुनप्रर्काशित लेखमाला-१ महामानवों के अवतरण की नयी पृष्ठभूमि
पुनप्रर्काशित लेखमाला-२ धमर्श्रद्धा का सृजनात्मक नियोजन हो
पुनप्रर्काशित लेखमाला-३ सुरक्षा साधना का समर्थ ब्रह्मास्त्र
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- धर्मग्रन्थ हमें क्या शिक्षण देते हैं?
युग निमार्णी हवा (कविता) -मंगल विजय
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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