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Akhand Jyoti
Year 1997
Version 1
ईश्वरीय अपनत्व की...
ईश्वरीय अपनत्व की कसौटी
October 1997
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ईश्वरीय अपनत्व की कसौटी
करुणा से जन्मे मोती
वह करुणासागर प्राथर्ना की पुकार सुनता है
ज्योति पर्व पर 'श्री' तत्त्व के माहात्म्य को समझें
समष्टिगत चेतना चहुँओर संव्याप्त है
रहे भाव संकीर्ण अगर तो वह पूजन किस काम को?
सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न
जाको राखे साईया
प्रगति की आकांक्षा ही नहीं, प्रयास भी करें
शक्ति का अनन्त स्रोत प्राणाग्नि के रूप में अपने ही भीतर
वृद्धावस्था को भगाना हो तो जवारे का रस पियें
सबसे बड़ी पूँजी- प्रमाणिकता
शिव-उपासना के पीछे छिपे गूढ़ रहस्य
हमसे कहीं अधिक संवेदनशील हैं पेड़-पौधे
ईस देई फल हृदय बिचारी
शब्द को हम शब्दब्रह्म बना लें
बनौषधियजन-यज्ञचिकित्सा, नूतन आयाम
वह आत्माओं से बातें करती हैं
नवरात्रि साधना से पूर्व कुछ सावधानियाँ समझ लें
इस लोक से परे भी बहुत कुछ अतिविलक्षण है
परिष्कृत मस्तिष्क बनता है कल्पतरु
धर्ममय 'अर्थ' ही हमारे लिए वरेण्य हो
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार (पूवार्द्धर्)
वनौषधियों की वेदना (सप्तक्रान्तियों के संदर्भ् में)
पुनप्रर्काशित विशेष लेख- माँ गायत्री के वरद पुत्र- इस युग के विश्वामित्र
अपनों से अपनी बात- साधना वर्ग समारोह से उपजे दो महत्त्वपूर्ण कायर्क्रम
आत्मशक्ति से युगशक्ति के जागरण हेतु प्राणानुदानयुक्त विशिष्ट ध्यान-साधना
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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