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- जीवन समुद्र का मंथन एवं तीन दिव्य रतन
- अंतस् की निर्झरिणी-संजीवनी, प्रसन्नता
- जगे वह समझदारी, जो जीवन को धन्य बना दे
- माफी खुदा से- खुदा के बन्दों से
- ब्रह्माण्ड के कण-कण में है अनाहद नाद
- सच्चा सुख अंततः है कहाँ?
- सुव्यस्थित जीवन शैली ही वास्तविक अध्यात्म
- ऐसा बनें, जैसा दूसरों को बनाना है
- गायत्री हंस योग साधना
- आनंदकंद के आश्रय से संसिद्धि
- बाधाओं से टकराये जो, उसे इन्सान कहते हैं
- सूक्ष्म ध्वनि प्रवाह को सुने व समझें
- सबसे बड़ा शत्रु हैः असंयम
- लालच की हथकड़ी-व्यामोह की बेड़ी
- परम्पराओं की तुलना में विवेक सर्वोपरि
- धर्म चेतना का सारः आध्यात्मिक पंचशील
- अहंकार एक भारी विपत्ति
- क्या बिगाड़ा था उसने किसी का
- सूक्ष्म अवयवों का सुसंचालनः स्वास्थ्य संवर्द्धन
- परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी, युग संधि की वेला व हमारे दायित्व
- नमन है तुमको बारम्बार, समपत की अकुलाहट (कविताएँ)
- धारावाहिक विशेष लेखमाला-१५ , गायत्री जयंती (पुण्यतिथि) पर विशेष, परम पूज्य गुरुदेव पं( श्रीराम शर्मा आचार्य, गायत्री रूपी वटवृक्ष जिनकी ब्राह्मणत्व रूपी उर्वर भूमि में फलित हुआ
- अपनों से अपनी बात, श्रद्धाञ्जलि पर्व से चित्रकूट अश्वमेध तक