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Akhand Jyoti
Year 1984
Version 1
अपनों से अपनी...
अपनों से अपनी बात
March 1984
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Page Titles
नीति सत्ता-एक अनुशासन, एक अनुबन्ध
विधि का विधान कर्म का प्रतिफल
ज्ञान का आदि स्रोत जिज्ञासा
दृश्य से परे विचारों की विलक्षण दुनियाँ
पूर्व जन्म की स्मृति-अवांछनीय
मानव से जुड़ी परोक्ष जगत् की हलचलें
सिद्धि का दशर्न और मर्म
पारस्परिक सहकार से गतिशील जीवन चक्र
आत्मबोध की चमत्कारी परिणतियाँ
आत्मा शरीर से भिन्न है और स्वतंत्र भी
स्वप्नों से होती है, आगत की जानकारी
चेतना जगत् की सुलझती गुत्थियाँ
अतीन्द्रिय क्षमताएँ-अभ्यास की देन
अन्य प्राणी सवर्था पिछड़े हुए ही नहीं हैं
वरिष्ठता, विस्तार में नहीं स्तर में है
उसने हिम्मत और उम्मीद नहीं छोड़ी
वरिष्ठ आत्माओं के इस धरती को विशिष्ट अनुदान
प्रौढ़ावस्था प्रगति एवं परिपक्वता की अवधि
स्वार्थ सिद्धि एवं औचित्य की मर्यादा
उपयोगी ज्ञान वृद्धि-विवेक बुद्घि के सहारे
जिन्दगी चालीसवें साल से शुरू होती है
प्रगति और कर्मठता एक ही तथ्य के दो पक्ष
मुस्कान एक औषधि एवं समग्र उपचार
गर्मी और रोशनी से दूर न भागें
विधेयात्मक चिन्तन की फलदायी परिणतियाँ
हम अनिष्ठ काल में से गुजर रहे हैं
पृथ्वी के इर्द-गिर्द चल रही अवांछनीय हलचलें
प्रकृति की छेड़-छाड़ अवांछनीय अहितकर
यज्ञ में मंत्र शक्ति के प्रखर प्रयोक्ता
अन्धकूप के पाँच प्रेत
अपनों से अपनी बात
सब कुछ लुट गया
कंटको की राह
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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