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Akhand Jyoti
Year 1984
Version 1
शब्द ब्रह्म का...
शब्द ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उसकी चमत्कृतियाँ
April 1984
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Page Titles
प्रज्ञा-मानव को प्राप्त दैवी अनुदान
आत्मज्ञान की उपलब्धि अमरत्व की सिद्धि
ईश्वर विकास का चरम बिन्दु है
परब्रह्म की सत्ता के कारण और प्रमाण
दैवी अनुदानों का सच्चा अधिकारी कौन
परिवतर्न सृष्टि की एक शाश्वत विधि व्यवस्था
ऊर्जा का संचय एंव सुनियोजन
मनोनिग्रह सबसे बड़ा पुरुषार्थ
चिन्तन व्यवस्थित हो विधेयात्मक हो
सदाशयता की महत्त्वाकांक्षा हर दृष्टि से हितकर
विचार सम्प्रेषण की अद्भुत शक्ति-सामर्थ्य
आत्म बोध से ही जीवन सम्पदा की सार्थकता
विलक्षण सामर्थ्य का समुच्चय यह मानव शरीर
सिद्धान्त व्यवहार में उतरे तो ही सार्थक्
ओजस्विता, तेजस्विता और मनस्विता का आंतरिक भाण्डागार
मनुष्येत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताएँ
मानवी पुरुषार्थ और कमर्फल के सिद्धान्त
परोक्ष से सम्पर्क स्थापित कर बहुत कुछ हस्तगत किया जा सकता है
मृत्यु ही जीवन का अन्त नहीं है
जीवेम शरदः शतम्
सृजन शक्ति का प्रेरणा स्रोत-काल
उद्विग्नता मनुष्य की प्राण घातक शत्रु
स्मरण शक्ति की न्यूनता से चिन्तत न हों
आत्म विश्वास जगाएँ-सफलता पाएँ
आसार बताते हैं कि हिमयुग आने वाला है
नजरे जो बदली तो नजारे बदल गये
शब्द ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उसकी चमत्कृतियाँ
सूक्ष्मीकरण पर आधारित यज्ञोपचार पद्धति
प्रलोभन की मृग मरीचिका एवं अपरिग्रह का नन्दन वन
अपनो से अपनी बात
यह धरती पावन बन जाये-गीत
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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