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Akhand Jyoti
Year 1972
Version 1
मरने के बाद...
मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व रहता है
September 1972
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अन्त:कण में ईश्वर का दर्शन
समुद्री लहरो की तरह हमारी जीवन उछले, गरजे और आगे बढे
मृदुलता और कठोरता से ओत- प्रोत मानवी काया
शान्ति बाहर नही - भीतर खोजनी पडेगी
पृथ्वी का ओर छोर – बनाम जीवन का आदि अन्त
दर्शन पर्याप्त, भगवान को साथी और सेवक बनायें
चुम्बक और मानवीय प्रकृति का सादृश्य
सुख भगवान की दया, दु:ख उनकी कृपा
मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व रहता है
आलोचना से डरे नहीं - उसके लिये तैयार रहें
हारमोन स्त्रावो का उद्गम अंत: चेतना से
शरीरगत विद्युतशक्ति को सुरक्षित रखें - बढायें
हम ईश्वर के होकर रहें - उसी के लिये जियें
मस्तिष्कीय स्तर मोडा और मरोडा जा सकता है
प्रतिविश्व – प्रति पदार्थ- शक्ति का अजस्त्र स्त्रोत
तीन महीने के प्रशिक्षण का संक्षिप्त सत्र
परिश्वर का निराकार और साकार स्वरुप
“सांस मत लो- इस हवा में जहर है”
दिव्य अग्नि का अभिवर्धन उन्नयन
परमार्थ के लिये अपने को खतरे में डालने वाले
हम सोमरस पियें - अजर अमर बनें
संसार मे त्रिविध कष्ट और उनका निवारण
साहसी पक्षी - जिन्हे पुरुषार्थ के बिना चैन नहीं
अस्वस्थता की टहनी नहीं - जड उखाडें
जीवन तत्व की गंगोत्री - प्राणशक्ति
अन्त:करण को पवित्र बनाने की प्रभु प्रार्थना
अपनों से अपनी बात— आत्मबोध, आत्म-निर्माण और आत्म विकास की राह पर चल पड़ें
जय बोलो श्रीराम की
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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