भारतीय संस्कृति की अनुपम देन- विवाह संस्कार

हिन्दू संकृति में विवाह का उद्देश्य संसार की अन्य जातियो की अपेक्षा हिन्दू जाति की अपनी कुछ विशेषताएँ है । इसका आधार आध्यात्मिकता है । ऋषि अपनी लम्बी खोज के परिणामस्वरूप इस निर्णय पर पहुँचे थे कि मनुष्य जीवन की सच्ची सुख-शान्ति और आनन्द आध्यात्मिकता में ही है । इसलिए उन्होंने हिन्दू जाति के प्रत्येक क्रिया-कलाप, आचार व्यवहार एवं चेष्टा में इस तत्त्व का विशेष स्थान रखा । यही कारण है कि हमारी छोटी से छोटी क्रिया में भी धम का दखल है । हमारी खान-पान, मलमूत्र त्याग, सोना-उठना आदि सभी शारीरिक और मानसिक, बौद्धिक क्रियाएँ धर्म द्वारा नियन्त्रित की गई हैं ताकि इनको भी हम ठीक ढ़ंग से करें और जैसा करना चाहिए, उससे नीचे न गिरे और मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ सकें । हमारे वेद शास्त्रों का प्रयास इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए है । ऊँचे आदर्शो को लेकर चलने के कारण ही संसार की सभी सभ्य जातियों में इसका हमेशा ऊँचा स्थान रहा है विवाह के सम्बन्ध में भी यही बात लागू होती है क्योंकि हिदू धर्म में विवाह का उद्देश्य काम-वासना की तृप्ति नहीं वरन् मनुष्य जीवन की अपूर्णता को दूर करके पूर्णता की ओर कदम बढ़ाना है । विवाह में प्रयोग आने वाले मन्त्र हमें इसी ओर संकेत करते हैं ।

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