संत विनोबा भावे
सन १६५१ की बात है। आंध्र के तैलंगाना प्रदेश में साम्यवादियो का उत्पात
चरम सीमा पर पहुँच गया था ।। कितने ही लोग मारे जा चुके थे ।। वे रात्रि के
समय दल बनाकर किसी गाँव में जाते और वहाँ केबडे़ आदमियों की संपत्ति,
अनाज, फसल को लूट लाते थे ।। देशहितैषी व्यक्ति इस स्थिति से बहुत चिंतित
थे ।। लूटने वाले प्राय: निर्धन किसान होते थे और लूटे जाने वाले धनवान्
किसान, बौहरेऔर जमींदार श्रेणी के लोग ।। इससे यह तो प्रकट था की इन मामलों
को डकैती और अथवा गुंडागर्दी नहीं कह सकते ।। उन लोगों का का कहना भी यही
था कि उनके पास खेती के लिये जमीन नही है, धनवान् लोग काम कराके भी बहुत
थोड़ी मजदूरी देते है, ऐसी दशा में अगर हम लूमार करके अपनी तथा अपने बाल-
बच्चों की प्राण रक्षा न करें, तो और क्या करें?
ये सब बातें बाबा विनोबा (जन्म १८६५ई०) ने उस समय सुनी, जब वे
हैदराबाद के सर्वोदय- सम्मेलन' में ३०० मील की पैदल यात्रा करके गये थे।
कांग्रेस पक्ष वाले ग्रामीण तैलंगाना के कम्युनिस्टों को रात का राजा' कहते
थे। वे लोग सदा भयभीत रहते थे कि न मालूम कब ये राजा लोग' आकर लूट ले
जायेंगे ।।
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