सुख-शांति की साधना

स्वर्ग पाने के लिये प्रायः सभी लोग उत्सुक रहते हैं। स्वर्ग एक उपलब्धि मानी जाती है। मनुष्य की यह इच्छा होती है कि यह जिस स्थान पर है, वहां से आगे बढ़े। वह उन वस्तुओं को प्राप्त करे, जो उसके पास नहीं हैं। मनुष्य एक जीवन्त प्राणी ही नहीं, वह विवेक तत्त्व से भी समान्वत है। जीवन और विवेक का मिलन उसे उन्नति और प्रगति के लिये प्रेरित करता है। जिसमें यह दोनों तत्त्व मौजूद होते हैं, वे आगे बढ़ने और ऊपर उठने के प्रयत्न से विरत नहीं रह सकते। वे उसके लिये यथासाध्य प्रयत्न अवश्य करेंगे। स्वर्ग एक उपलब्धि मानी गई है। उसको संसार से अलग भी माना जाता है। मानव-जन्म के उपलक्ष में संसार तो उसे मिल ही चुका होता है। अस्तु, अपनी प्रकृति के अनुसार इस मिले हुए से आगे बढ़कर, जो अब तक नहीं मिला है, उस स्वर्ग को पाना चाहता है। ऐसा करने में उसे पुरुषार्थ का श्रेय मिलता है, वृत्ति का सन्तोष होता है और उपलब्धि का गौरव प्राप्त होता है।

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118