राष्ट्रीय प्रगति के कुछ अनिवार्य मापदंड

विश्व की आबादी तीव्रगति से बढ़ रही है । यह बढ़ोत्तरी उसी अनुपात में जीवन यापन के साधनों की माँग करती है । आवश्यकता और उसकी पूर्ति का संतुलन न बन पाने से असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है जो विविध प्रकार की समस्याओं को जन्म देती है । साधन सीमित और माँग अधिक । ऐसे में यह जरूरी है कि उत्पादन बढ़ाकर बढ़ी हुई माँग की पूर्ति की जाय । उत्पादन बढ़ाने के तरीके क्या हों ? दोहन या सुनियोजन, यह प्रश्न स्थाई हल चाहता है । एक तरीका तो यह हो सकता है कि पृथ्वी को कृत्रिम रासायनिक खादों की शराब पिलाकर उसका अधिकाधिक दोहन कर लिया जाए और कुछ समय बाद उसे बंजर स्थिति में पहुँचा दिया जाए दूसरा तरीका यह है कि उन निरापद संकटों से रहित उर्वरकों का अधिक परिमाण में प्रयोग करके उत्पादन में वृद्धि की जाए । साथ ही निरर्थक पड़ी लाखों एकड़ भूमि में थोड़ा सुधार करके खेती के काम में लाया जाए । हर विचारशील व्यक्ति दूसरे सुझाव का ही समर्थन करेगा । कारण यह है कि कृत्रिम खादों के प्रयोग से तत्काल उत्पादन तो बढ़ जाता है पर दूरगामी परिणामों की दृष्टि से वह अदूरदर्शी प्रयत्न अत्यंत हानिकारक है । कृषि विशारदों के नवीनतम निष्कर्ष बताते हैं कि पृथ्वी अपनी उर्वराशक्ति रासायनिक खादों के प्रयोग से तीव्रगति से खोती जा रही है तथा सारे विश्व में इस अंधाधुंध प्रयास से बंजर भूमि का विस्तार होता जा रहा है ।

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