प्रज्ञॊपनिषद् खन्ड-6

परमपूज्य गुरूदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने प्रज्ञापुराण के रूप मेँ जन-जन को लोक-शिक्षण का एक नया आयाम दिया है । इसमें उनने चिरपुरातन उपनिषदृ शैली में आज के युग की समस्याओं का समाधान दिया । यह क्रातिदर्शी चिंतन उनकी लेखनी से जज निस्मृत हुआ तो इसने पूरे क्षेत्र को उद्वेलित काके रख दिया । वस्तुत: यह पुरुषार्थ हजारों वर्षों बाद
सप्तर्षियों की मेधा के समुच्चय को लेकर जन्मे प्रज्ञावतार के प्रतिरूप आचार्यश्री द्वारा जिस तरह किया गया, उसने इस राष्ट्र व विश्व की मनीषा को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया।
प्रज्ञा पुराण की रचना परमपूज्य गुरुदेव ने क्यों की? इस तध्य को समझने के लिए प्रज्ञा पुराण के प्रथम खड की भूमिका में उनके द्वारा लिखे गए अंश ध्यान देने योग्य हैं…अपना युग अभूतपूर्व एवं असाधारण रूप से उलझी हुई समस्याओं का युग है । इनका निदान और समाधान भौतिक-क्षेत्र में नहीं, लोक-मानस में बढ़ती जा रही आदर्शो के प्रति अनास्था की परिणति है । काँटा जहाँ चुभा है, वहीं कुरेदना पडेगा । भ्रष्ट-चिंत्तन और दुष्ट
आचरण के लिए प्रेरित करने वाली अनास्था को निरस्त करने के लिए ऋतंभरा महाप्रज्ञा के दर्शन एवं प्रयोग ब्रह्मस्त्र ही कारगर हो सकता है।

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