पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक

आज हम इक्कीसवीं सदी के विज्ञान प्रधान युग में जी रहे हैं ।। तर्क, तथ्य, प्रमाण की कसौटी पर ही कसकर आज का जनसामान्य किसी तथ्य को गले उतार पाता है ।। विज्ञान ने एक नई दृष्टि दी है एवं उसी का परिणाम है कि भौतिकक्षेत्र में सुविधाएँ देने वाली ढेर सारी उपलब्धियाँ हस्तगत होती चली गयीं ।। विज्ञान और धर्म परस्पर पूरक हैं ।। यदि दोनों का सही अनुपात बना रहेगा तो निश्चित ही अध्यात्म सम्मत विज्ञान एवं विज्ञान सम्मत धर्म लोक हितकारी बनेगा ।। हमारी संस्कृति चिरपुरातन है एवं विज्ञान ने आज जो दृष्टि दी है, वह हमारे ऋषि मुनियों ने हमें वैदिक काल में ही देकर जीवन को सर्वांगपूर्ण बना दिया था ।। .. दुर्भाग्य की बात है कि आदिम मानव- नरपशुओं के समय जैसी कुप्रथाएँ जो किसी षड्यंत्रवश वेदों के शब्दों का गलत अर्थ लगाकर मध्यकाल में पनपायी गयीं, आज भी दिखाई देती हैं ।। पशुबलि उनमें से एक है ।। '' अहिंसा परमोधर्म: '' का विवेचन कर धर्म को नया आयाम देने वाले गौतम बुद्ध के धरती पर आविर्भाव के २५०० वर्ष बाद भी यह प्रथा जनजातीय वर्ग में- सामान्य जनों में जीवित है ।। कौन सा धर्म सिखाता है कि देवी बलि से प्रसन्न होती है? यदि ऐसा होता है तो वह देवी है ही नहीं …

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