महर्षि कार्ल मार्क्स

उस समय जर्मन सरकार जन-जाग्रति का दमन करने पर उतारू हो गई थी। योरोप में क्रान्ति की जो हवा फैल रही थी, वह जर्मनी में भी पहुँच गई थी। जनता चाहती थी कि देश का शासन सार्वजनिक हित को दृष्टि में रखकर किया जाय और शासन संस्था में प्रजा के प्रतिनिधियों को उचित स्थान मिले। पर निरंकुश शासक इस प्रकार की माँग को “छोटे मुँह बड़ी बात” समझते थे और इसलिए जनता के मुंह को तरह-तरह से बंद करने की कोशिश कर रहे थे।
ऐसे समय में कार्लमार्क्स (सन् १८१८से१८८३) ने सरकार का मुकाबला करने के लिए “राइनिश जीतुंग” नामक अखबार का संपादन ग्रहण किया। उसकी लेखनी ऐसी जोरदार थी और वह  सरकार की गलत नीतियों पर ऐसे प्रहार करता था कि कुछ  ही समय में उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया। पर साथ ही  सरकारी “सेंसर” की क्रूर दृष्टि भी उस पर अधिकाधिक पड़ने लगी और उस पत्र के कार्य में तरह-तरह की विघ्न बाधाएं डाली जाने लगीं। तो भी मार्क्स ऐसे घुमा-फ़िराकर लिखता था कि वह सेंसर के फंदे से बच जाता था। अंत में सरकार ने अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया और “राइनिश जीतुंग” को राज द्रोही बतलाकर जबरदस्ती बंद कर दिया।                   
जब

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118