धर्म को संवेदना का उद्गम- स्रोत कह सकते हैं वह उपदेश नहीं उपचार है, जिसके सहारे दिव्य चक्षुओं पर चढी हुई धुंध को दूर किया जा सकता है उस धुंध के हटने पर पदार्थ के अतंराल में संव्याप्त सत्ता को देखा जाता है उसी के सहारे उस ब्रह्माडव्यापी चेतना की अनुभूति होती है: जिसे विश्वात्मा कहा जाता है और जिसका एक घटक आत्मा हो विचार से पदार्थ के गुण- धर्म- स्वभाव और उपयोग को जाना जाता है, धर्म से आत्मा का साक्षात्कार होता है और जीवन को आत्मा के अनुशासन में चलने के लिए प्रशिक्षित और अभ्यस्त किया जाता है । ………..