विचार शक्ति विश्व की सबसे बडी़ शक्ति है । उसी ने मनुष्य के द्वारा इस ऊबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है । विनाश करना होगा तो भी वही करेगी । उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है । वस्तुरिथति को समझते हुए इन दिनों करने योग्य एक ही काम है-जनमानस का परिष्कार । इसी को विचार-क्रांति का नाम दिया गया है । अध्यात्म की भाषा में इसे ही ज्ञानयज्ञ कहते है । इसी की सफलता, असफलता पर विश्व का, मनुष्य का उत्थान-पतन पूरी तरह निर्भर है ।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य