सर्पगंधा औषधि का उदाहरण उपरोक्त तथ्य को और अधिक स्पष्ट करता है ।
'शवोल्फिया सर्पेण्टीना' नामक यह औषधि आर्युवेद में चिरपुरातन काल से
मानसिक रोगों व रक्त भाराधिक्य में प्रचलित है । इसके 20 एल्केलाइड्स
(क्षारभ) रासायनिक प्रक्रिया द्वारा अलग किए जा चुके हैं व उन्हें कृत्रिम
निर्माण विधि द्वारा संशोशित भी किया जा चुका है । यदि इसके एक ही
एल्केलालाइड 'रिसर्पीन' को रोगी को दिया जाए तो वह रक्तचाप में कमी लाता है
व आज रक्तचाप की बहुप्रचलित औषधि भी है । पर इसके दुष्प्रभाव इतने हैं कि
कोई गिनती नहीं । मानसिक बेचैनी, तनाव, आत्महत्या की प्रवृत्ति नाक में
तीव्र खराश, खून बहना जैसे कई दुष्प्रभाव 80 प्रतिशत से अधिक रोगियों में
होते हैं। यदि वही सर्पगंधा पौधे के रूप में दिया जाए तो उल्टे मानस
रोग की अचूक औषधि बन जाता है । उन्माद में विशेष लाभदायक सिद्ध होता है ।
सर्पगंधा की जड़ जो बहुत कड़वी होती है, यदि बिना वमन किए खाई जा सके तो
उसमें रिसर्पीन की मात्रा इतनी अधिक कम पर इतनी सूक्ष्म होगी कि उसके
रक्तचाप पर वांछित परिणाम ही मिलेंगे