माँ अपने बच्चे के निर्माण करने के संबंध में अपने कर्तव्यों को प्राय: पाँच वर्ष तक पूरा कर लेती हैं ।। पेट में जिस दिन से बच्चा आता है, उसी दिन से माँ का कर्तव्य शुरू हो जाता है ।। बालक का स्वास्थ्य और बालक का मस्तिष्क विकास के लिए अपने चिंतन और उसको अपने आहार- विहार में जिस तरह संयम बरतना चाहिए यह क्रिया पाँच साल तक जारी रहती है; क्योंकि माता का ही बच्चे से सबसे अधिक संबंध रहता है ।। माँ के पास वह स्वयं रहता है, खेलता भी वह माता के पास है, बातचीत भी वह माता से ही ज्यादा करता है ।। गोदी में भी वह माँ के पास आता है ।। माता का सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चे पर तब तक होता है, जब तक उसकी उम्र पाँच साल की होती है ।। पाँच साल के बाद शिक्षण की जवाबदारी दूसरे लोगों के कंधों पर चली जाती है ।। माँ की, अभिभावकों की जिम्मेदारी तो हमेशा ही रहेगी, उसमें तो कमी क्या हो सकती है, लेकिन मुख्यतया उसकी जिम्मेदारियों अभिभावकों पर चली जाती हैं, जिनमें पिता मुख्य है ।।