अपने दीपक आप बनो तुम

पहले सेवा, फिर उपदेश भिक्षु कलम्भन ने धर्म प्रचार के लिए जाते समय प्रस्थान की घड़ी में भगवान् तथागत को प्रणाम किया। भगवान् तथागत ने अपने इस प्रिय शिष्य को दोनों हाथों से उठाया और हृदय से लगाते हुए कहा- वत्स! संसार बड़ा दुःखी है। लोग अज्ञानवश कुरीतियों से जकड़े हुए हैं। तुम उन्हें जागृति का संदेश दो। ध्यान रहे विचार क्रान्ति ही धर्म चक्र प्रवर्तन की धुरी है और आत्मकल्याण के साथ लोक कल्याण का महामंत्र भी। अपने शास्ता की चरण धूलि को माथे पर लगाकर कलम्भन चल पड़े। दिन छिपने से कुछ पूर्व ही वह एक गांव में जा पहुँचे। इस गांव में महामारी का प्रकोप था। वहाँ के प्रायः सभी पुरुष बीमार पड़े थे। स्त्रियाँ उनकी सेवा- शुश्रूषा में व्यस्त थीं। बच्चों की त्वचा हड्डियों से चिपक गयी थी। ऐसा लग रहा था कि इस पूरे गांव में किसी को भी न तो भर- पेट अन्न मिलता था और न ही उन्हें बीमारियों से लड़ने के लिए जीवन रक्षक औषधियाँ। शिक्षा की दृष्टि से भी उनमें से किसी को कोई चेतना न थी। सभी एक से बढ़कर एक म्लान- मलिन और

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