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अन्तर्जगत् की...
अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -3
ध्रुव तारे पर संयम से होता है नक्षत्रों का ज्ञान
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Page Titles
अन्तरस
ध्येय में मन की एकाग्रता-धारणा
स्वयं का स्वयं के प्रति होश है- ध्यान
चित का ध्येय में विलय है -समाधि
धारणा, ध्यान समाधि, का एकत्व है संयम
संयम सिद्धि से होती है बुद्धि प्रकाशित
क्रमिक होती है संयम की साधना
अनूठी है संयम की विभूति
निष्कामता से खुलता है समाधि का द्वार
चित्त की चंचलता का रूपांतरण है समाधि
दिव्यता की एक झलक से बदलती है दुनिया
अशांति का समाधान है एकाग्रता
भूत और भविष्य से मुक्त आज का आनंद
हरपल परिवर्तन का नाम है प्रकृति
निराकार से एकाकार होने का विज्ञान
योग विधियों से घटते हैं चित्त की भूमि में चमत्कार
कैसा होता है भूत और भविष्य का ज्ञान
भावों पर संयम से होता है सभी भाषाओं का ज्ञान
संस्कारों के ज्ञान से होता है जन्म-जन्मांतरों का बोध
संयम से खुलते हैं दूसरे के मन के द्वार
समाधि से संभव है दूसरे के चित का सम्यक ज्ञान
अदृश्य होने का ज्ञान और विज्ञान
शब्दों के तिरोहित हो जाने का विज्ञान
कर्मों के संयम से मिलता है मृत्यु के क्षण का ज्ञान
मैत्री गुण के सधने से साधते हैं सारे गुण
संयम के सदुपयोग से होता है असंभव भी संभव
योगी की शक्ति है प्रज्ञा का प्रकाश
सूर्य पर संयम करने से होता है सारे लोको का ज्ञान
चंदमा पर संयम से मिलती है अमरता
ध्रुव तारे पर संयम से होता है नक्षत्रों का ज्ञान
नाभि चक्र पर संयम से होता है जीवन का सम्यक ज्ञान
कण्ठ पर संयम से होता है क्षुधा पर नियंत्रण
कूर्म नाड़ी पर संयम से मिलता है परम एकत्व
ब्रह्मरंध् पर संयम से होता है ब्रम्हज्ञानियों का ज्ञान
बुद्धि व बोध का समन्वय है प्रतिभा
हृदय पर संयम से होता है चित का ज्ञान
स्वार्थ पर संयम से होता है आत्मपुरुष का ज्ञान
जीवन के शीर्षासन से प्राप्त दुर्लभ सिद्धियां
योगी के लक्ष्य में भटकाव है सिद्धियां
योगी के लिए संभव है परकाया प्रवेश
उदान प्राण के संयम से होती है उधर्व गति
जठराग्नि को प्रदीप्त करने की साधना
पराभौतिक श्रवण शक्ति की प्राप्ति
आकाशगमन का योग विज्ञान
देह बोध से आत्मबोध का मार्ग- विदेह धारणा
भूतजय की सिद्धि
अष्टसिद्धियों की प्राप्ति का योग पथ
भूतजय होने पर मिलती है वज्र समान काया
समस्त इंद्रियों पर विजय
प्रकृति पर अधिकार करता है योगी
भावों व पदार्थों पर अधिकार की योगसाधना
वैराग्य का परम शिखर है कैवल्य
देव निमंत्रण से भ्रमित नहीं होता है योग साधक
क्षण -क्रम सधे तो होता है विवेक ज्ञान
भेदों की सूक्ष्मताओं का बोध कराता है विवेक
सबका सब प्रकार से सम्यक ज्ञान है - विवेकजनित ज्ञान
चित व पुरुष की सम्यक शुद्धि का परिणाम है कैवल्य
उपसंहार
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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