विवाहो के आदर्श और सिद्धांत

किसी जीवित समाज और सजीव राष्ट्र को यह रीति-नीति अपनानी ही पड़ती है कि वह अपनी आन्तरिक दुर्बलताओं को समझे और उन्हें सुधारने के लिए साहसपूर्वक प्रयत्न करे। जिनमें यह प्रवृत्ति विकसित नहीं हुई, जिन्हें ढर्रे का जीवन जीते रहने की आदत है वे पिछड़ जाते हैं। समय उन्हें पीछे छोड़कर बहुत आगे बढ़ जाता है और उन्हें अपनी भूल पर पछताते रह जाना पड़ता है। परिस्थितियो का सुधरना-बिगड़ना विचारो के उकष्ट-निकृष्ट होने पर निर्भर है। मनुष्य की ९० प्रतिशत शक्ति उनके भीतर चेतन प्रदेश में भरी पड़ी रहती है। आदमी जैसा सोचता हे, वैसा ही उसकी चेष्टाएँ होती है और जैसी चेटाएँ होती हैं वैसी ही साधन-सामग्री मिल जाती है और वैसी ही परिस्थितियाँ बन जाती हैं व्यक्ति तथा समाज के उत्थान-पतन की यही परिपाटी रही है और रहेगी । सैकड़ो वर्षों से चीन अफीमची बना चला आ रहा था, वहाँ लोगो को यह लत थी, जिसके कारण वे अपना बहुत कुछ गँवा चुके थे । उनने अपने आपको सुधारने एव बदलने का क्रम बनाया तो पिछले ३० वर्षो में उस पिछड़े हुए देश ने आशातीत प्रगति करके दिखाई।

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