दहेज के दानव का अन्त अब होना ही चाहिए
दहेज का दानव कब तक जियेगा?
विश्व की किसी भी संस्कृति, किसी भी देश ने विवाह को एक महान् आध्यात्मिक संस्कार की इतनी महता प्रदान नहीं की जितनी इस देश ने ।। यहाँ विवाह को दो आत्माओं का पुनीत गठबन्धन माना जाता है ।। यह दो व्यक्तियों का ही नहीं दो परिवारों के संगम का पुनीत बंधन है। ।। जन्म से ही अपरिचित दो कुटुम्बो के बीच जव इतनी घनिष्ठ आत्मीयता जमती देखते हैं तो भारतीय विवाहो की गरिमा अपने प्रखर रुप में चरितार्थ हो उठती है।
किन्तु जहाँ अपने सभी तरह के आध्यात्मिक, धार्मिक आदर्शो का रूप विकृत होता चला जा रहा हे दहेज और वधू शुल्क मे कट्टर प्रचलन के साथ अब विवाह सामाजिक जीवन में आत्मीयता और अन्तरंग एकता स्थापित करने का, दो परिवारों को, दो आत्माओं को एक स्नेह सूत्र मे जोड़ने का माध्यम न रहकर विग्रह, विद्वेष और अनैतिक आचरणों की प्रेरणा का साधन बन गया हे अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन मे इन दिनों जिस अनैतिकता के दर्शन होते हैं उसमें वित्तेषणा उतनी प्रमुख नहीं जितनी अभिभावको को बेटियों के लिए दहेज जुटाने की समस्या ।। जिसके बिना आज किसी भी लड़की का विवाहित जीवन सुखी