वैज्ञानिक अध्यात्म में वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों का सुखद समन्वय है। वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं में पूर्वाग्रहों, मूढ़ताओं एवं भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है। यहाँ तो तर्क संगत, औचित्य निष्ठ, उद्देश्यपूर्ण व सत्यान्वेषी जिज्ञासु भाव ही सम्मानित होते हैं। इसमें रूढिय़ाँ नहीं प्रायोगिक प्रक्रियाओं के परिणाम ही प्रामाणिक माने जाते हैं। सूत्र वाक्य में कहें तो वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं में परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व मिलता है। वेदों के ऋषिगण इसी का सत्यमेव जयते के रूप में उद्घोष करते हैं।
वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं का यह सत्य- आध्यात्मिक जीवन मूल्यों की परिष्कृत संवेदना से मिलकर पूर्ण होता है। परिष्कृत संवेदना ही वह निर्मल स्रोत है, जिससे समस्त सद्गुणों जन्मते और उपजते हैं। जहाँ परिष्कृत संवेदना का अभाव है, वहाँ सद्गुणों का भी सर्वथा अभाव होगा। कई बार भ्रान्तिवश सत्य एवं संवेदना को विरोधी मान लिया जाता है। जो इन्हें विरोधी समझते हैं, वही विज्ञान और अध्यात्म के विरोधी होने की बात कहते हैं। जबकि सत्य और संवेदना- विज्ञान और अध्यात्म की भांति परस्पर विरोधी नहीं पूरक हैं। सत्य संवेदना को संकल्पनिष्ठा बनाता है और संवेदना सत्य को भाव निष्ठा- जीवन निष्ठा बनाती है।