संगठन की रीति-नीति

परम पूज्य गुरुदेव ने इस तथ्य की ओर बार-बार ध्यान दिलाया है कि युग परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । संत सूरदास, फ्रांसीसी भविष्यवक्ता नेस्ट्रॉडमस आदि से लेकर महात्मा बहाउल्ला, स्वामी विवेकानंद, योगी श्री अरविन्द आदि ने जिस महान युग के आने के सुनिश्चित संकेत दिए हैं, उसकी अति महत्वपूर्ण अवधि यही है । जब भी ऐसे समय आते हैं, तब परमात्मसत्ता उपयुक्त माध्यमों के सहयोग से अद्भुत परिवर्त्तनों की व्यवस्था बनाती है । इस प्रकार की व्यवस्था जुटाने-बनाने में ऋषितंत्र की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण रही है ।

पूज्य गुरुदेव ऋषि चेतना के युगीन प्रतिनिधि के रूप में अवतरित और सक्रिय हुए । उन्होंने देखा कि सारी विसंगतियों के पीछे मनुष्य की अनास्था और दुर्बुद्धि है, जो उससे दुष्कर्म करा रही है और सांस्कृतिक आदर्शों के विपरीत अपसंस्कृति का वातावरण बना रही है । उपचार के रूप में उनके माध्यम से सद्बुद्धि और सत्कर्म की साधना जनसुलभ बनकर देवसंस्कृति के उन्नयन और विकास का संकल्प उभरा । उन्होंने स्वयं कठोर साधना की, तथा बड़ी संख्या में युगसाधक तैयार करके, हिमालय के ध्रुव केन्द्र से प्रवाहित विचार प्रवाह और शक्ति प्रवाह को जनसुलभ बनाया और उस आधार पर सृजन आन्दोलन चलाया ।

आंदोलन का लक्ष्य मानव समाज को स्वस्थ शरीर, स्वच्छ

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