युग की माँग प्रतिभा परिष्कार

आत्मिक प्रगति का प्रत्यक्ष प्रमाण

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असमर्थों के साथ उदारता बरती और उनकी सहायता की जाती है। बच्चों को सुविधा देने में अभिभावक अपनी अपेक्षा एवं उन्हें प्राथमिकता देते हैं। यह उचित भी है और आवश्यक भी। पर यह भी निश्चित है छोटे बच्चों का विवाह नहीं किया जाता; क्योंकि वे पत्नी का दायित्व वहन करने की स्थिति में नहीं होते। इसी प्रकार उन्हें किसी बड़ी प्रतियोगिता में सम्मिलित होने, बढ़ा-चढ़ा कारोबार सँभालने या सेना में भर्ती होने के लिए उत्साहित नहीं किया जाता है; क्योंकि असमर्थता के रहते किसी से कोई बड़ा कार्य सधता नहीं। फिर उन्हें बाधित और लज्जित क्यों किया जाय? रोगी, वृद्ध, अपंग, अविकसित भी तो ज्यों-त्यों करके अपने दिन काटते हैं। जो अपना भार स्वयं वहन नहीं कर सकते, वे किसी आड़े समय में कोई बड़ा काम कर दिखाने का साहस कहाँ जुटा पाते हैं? कहने और सोचने को तो शेख चिल्ली भी लम्बी हाँकता था, पर उसका हवाई महल साकार कहाँ हो सका था।

    नवसृजन एक अतीव महत्त्वपूर्ण कार्य हैं। इतना महत्त्वपूर्ण कि उसके बन पड़ने पर उज्ज्वल भविष्य का प्रारम्भ संभव है और न बन पड़ने पर सुरसाओं का समूह इन मुट्ठी भर मनुष्य प्राणियों की सत्ता और महत्ता दोनों को ही उदरस्थ कर सकता है। यह ऐसा समय है जिसे ऐतिहासिक, अभूतपूर्व कहा जा सकता है। इसमें जीवन या मरण में से एक का चयन होना है। डूबने और पार होने में से कोई एक नियति इन्हीं दिनों अवतरित होने वाली है।

    प्रवाह विनाश की दिशा में बह रहा है। यह हस्तामलकवत् स्पष्ट है। तथाकथित प्रगति में अपने छल-छद्म के सहारे बहुत छीन लिया, यदि नशेबाजी जैसी खुमारी अभी न उतरी तो जो बचा है, उसे भी गँवा बैठने का दुर्दिन देखना पड़ सकता है। इसे देव और दैत्य के बीच छिड़ा हुआ घमासान युद्ध भी कह सकते हैं। तमिस्रा सघन और व्यापक है, किन्तु ब्राह्ममुहूर्त के उषाकाल ने पूरी तरह हार नहीं मानी है, यह अगले ही दिनों, अभिनव अरुणोदय का प्राची में उदय होना सुनिश्चित बताता है। आशा यही की जानी चाहिए कि महाकाल विनाश को निरस्त करने और विकास को प्रश्रय देने वाली योजना को ही समर्थन प्रदान करेंगे, उज्ज्वल भविष्य ही जीतेगा। सतयुग की वापसी वाली सम्भावना के पीछे अधिक प्राणवान् तथ्य हैं। इक्कीसवीं सदी में उज्ज्वल भविष्य के सजधज कर आने और सिंहासन पर विराजने का सुयोग बन पड़े, तो उसे दिव्यदर्शियों द्वारा अकारण की गई भविष्यवाणी नहीं मानना चाहिए।

    युगसंधि के लिए इस महा अभियान में, सभी दूरदर्शी अपने अपने दृष्टिकोण से योगदान प्रस्तुत करें। दुर्बल-नितान्त-परावलम्बी आन्तरिक सामर्थ्य के रहते हुए भी, सत्य के अवतरित होने की कामना करते रहें, तो भी काम चलेगा। प्रतिगामी दुराग्रही [अपने हठ और अवरोध को] समय को देखते हुए कुछ समय निरपेक्ष रहें और अड़ंगे आदि लगाने से बाज आएँ। निहित स्वार्थी को इसलिए शान्त रहना चाहिए कि समय परिवर्तन में उनका नाम काली सूची में न लिखा मिले और पराजित प्रतिरोध कर्ताओं की तरह लज्जित न होना पड़े। प्रमुख भूमिका तो उन प्रतिभाओं की रहेगी, जिनकी परम्परा ही अनौचित्य को उलट देने में अपनी गरिमा प्रकट करती रही है। इन प्राणवानों की श्रेणी में शामिल होना ही इन दिनों आत्मिक प्रगति का-वरिष्ठता का सुनिश्चित प्रमाण माना जायेगा।

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