पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य

जन्म मृत्यु का अविराम क्रम

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डॉक्टर इवान स्टीवेन्सन ने पुनर्जन्म की स्मृति से सम्बन्धित घटनाओं की जांच-पड़ताल करने के सम्बन्ध में समस्त संसार का दौरा किया है। इस सन्दर्भ में वे भारत भी आये थे और उन्होंने यहां अनेकों घटनाओं की गंभीरता पूर्वक जांच की और उनमें से अधिकांश को पूर्ण विश्वस्त बताया। इनकी खोज में दो घटनाएं और भी अधिक आश्चर्यजनक थीं। कन्नोज के निकट जन्मे एक बालक के शरीर पर गहरे घावों के पांच निशान जन्म काल से ही थे। वह कहता था पिछले जन्म में शत्रुओं ने उसकी हत्या चाकुओं से गोद कर की थी यह उसी के निशान हैं। जांच करने पर पूर्व जन्म में जहां उसने बताया था सचमुच ही उस नाम के व्यक्ति की चाकुओं से गोद कर हत्या किये जाने का प्रमाण था। ठीक इसी से मिलती-जुलती एक पूर्व जन्म स्मृति तुर्की के एक बालक की थी, जिसकी शत्रुओं ने छुरे से हत्या की थी। उसके शरीर पर घावों के निशान मौजूद थे और पुलिस के रिकार्ड में बताये गये व्यक्ति की हत्या ठीक उसी प्रकार किये जाने का विवरण दर्ज था, जैसा कि उस बालक ने बताया था। डा. इथान स्टीवेन्शन ने समस्त विश्व में इस प्रकार के प्रामाणिक विवरण प्राप्त किये हैं। अन्य देशों की अपेक्षा भारत में ऐसे प्रमाण इसलिए अधिक मिलते हैं कि यहां की संस्कृति में पुनर्जन्म की मान्यता सहज ही सम्मिलित है, इसलिए स्मृति बताने वाले बालकों को उस तरह डांटा डपटा नहीं जाता जैसा कि पुनर्जन्म न मानने वाले ईसाई, मुसलमान धर्म वाले देशों में, वहां इस तरह की स्मृतियों की जांच पड़ताल करना तो दूर, बताने वाले पर धर्म विरोधी होने के आक्रमण आरोप की बात सोचकर उसे चुप कर देना ही ठीक समझा जाता है। भारत में स्थितियां अनुकूल होने से प्रमाणों को दबाया नहीं जाता।

डा. स्टीवेंसन के शोधरिकार्ड में एक ऐसी पांच वर्ष की लड़की की भी घटना थी, जो हिन्दी भाषी परिवार में जन्म लेकर भी बंगला गीत गाती थी और उसी शैली में नृत्य करती थी। जबकि कोई बंगाली उस घर, परिवार के समीप भी नहीं था। इस लड़की ने अपना पूर्वजन्म सिलहट का बताया। इस जन्म में वह जबलपुर पैदा हुई, पर उसने पूर्व जन्म की जो घटनाएं तथा स्मृतियां बताई वे पता लगाने पर 95 प्रतिशत सही सिद्ध हुईं। भारत में स्थितियां अनुकूल होने से प्रमाणों को दबाया नहीं जाता। इसी प्रकार की 117 घटनाओं में डा. स्टीवेन्सन ने जांच के बाद प्रामाणिक पाया कुछ ये है।

1—बदायूं जिले के 21 वर्षीय प्रमोद कुमार ने अपने पूर्व जन्म के मुरादाबाद निवासी माता-पिता, पत्नी आदि को पहचाना। अपनी मृत्यु का कारण पेट का दर्द बताया। सम्बन्धियों को पहचाना, जेवर आदि की चर्चा की तथा अनेक घटनायें बताईं।

2—बदायूं कचहरी के चपरासी, रमेश नाई के चार वर्षीय पुत्र अनिल ने अपने को पूर्व जन्म में तेजपाल मुख्तार का पुत्र बताया। अपनी मृत्यु के सम्बन्ध में उसका कहना है कि अब से चार वर्ष पूर्व जब वह 16 वर्ष का था तब अपने बड़े भाई की पत्नी को लिवाने के लिए रिक्शे में जा रहा था कि रास्ते में 337 नम्बर की मोटर से रिक्शा टकरा गया और उसकी मृत्यु हो गई। स्रहसवान ले जाने पर उसने पूर्व जन्म के चचेरे भाइयों तथा उनकी पत्नियों को पहचाना। बड़े भाई को जूते की दुकान पर बिना रास्ता पूछे वह चला गया और बताया कि वह स्वयं भी इस दुकान पर बैठा करता था।

3—रिसौली गांव के सुन्दरलाल नामक एक डाक कर्मचारी की 7 वर्षीय पुत्र मीरा ने अपने को बदायूं के सराफ सीताराम की पत्नी बताया जिसका स्वर्गवास 23 वर्ष पूर्व हुआ था। तीन वर्ष की आयु में ही लड़की ने पूर्व जन्म की घटनाएं बतानी शुरू की थीं। जब लड़की को बदायूं ले जाया गया तो वह उस मकान पर अड़ गई जहां उसकी मृत्यु हुई थी। यह मकान बेच दिया गया है और सीताराम जी दूसरे मकान में रहने लगे हैं, यह बताने पर ही लड़की आगे बढ़ी। उसने अपने बेटे और पोते को भी पहचाना तथा कृषि में घाटा आना, घोड़ा तांगा रहने आदि की अनेक बातें बताईं जो सही थीं।

सुनील दत्त नामक लड़के ने अपने को पूर्व जन्म का स्वर्गीय सेठ श्रीकृष्ण बताया, उसके अनेक प्रमाण दिये तथा यह भी बताया कि उसने धर्मशाला इंटर कालेज तथा रामलीला मैदान के फाटक निर्माण कराने में कितना दान स्वयं दिया और कितना दूसरों में दिलाया। उसने ग्रुप फोटो में से अपना फोटो पहचान कर बताया।

मिदनापुर (बंगाल) के कालीचरण घोषाल एम.ए. पास करने के बाद एकाउन्टेंट जनरल के दफ्तर में नौकर हो गये। पीछे उनका तबादला मद्रास हो गया। एक दिन एक के.वी. नायर नामक मद्रासी युवक उनसे मिलने आया और बोला मैंने देखते ही यह अनुभव किया कि आप पहले जनम के मेरे छोटे भाई हैं। घोषाल जी को इस पर विश्वास न हुआ। अन्ततः यह निश्चय हुआ कि वस्तुस्थिति जानने के लिए बनारस चला जाय जहां कि उनके पिताजी रहते थे। दोनों गये। युवक ने पिताजी को ऐसी अनेक बातें बताईं जो उनके निजी परिवार के अतिरिक्त और किसी को मालूम न थीं। युवक की यह बात भी सच निकली के उसे 12 वर्ष की आयु में डाकुओं द्वारा मारा गया था।

आज से काई 5 वर्ष पूर्व घाटापोला गांव में एक पोस्टमैन के घर रूवी कुसुमा नाम की एक कन्या पैदा हुई। जब उसे कुछ ज्ञान आया तो वह घर को तमाम वस्तुओं को शंका की दृष्टि से देखने लगी। वह कहती यह मेरा घर नहीं। मेरे माता पिता अलूथवाला गांव में रहते हैं, यह स्थान यहां से चार मील दूर है। वहां मुझे अच्छी-अच्छी वस्तुयें खाने को मिलती थीं। एक दिन मेरे माता-पिता खेत काटकर लौट रहे थे। मार्ग में एक कूयें पर पानी पीते समय मैं उसमें गिर गई और मेरी मृत्यु हो गई। उसने अपने पिता का नाम पुंजीनोवा और एक भाई का नाम करुणासेन बताया। उसने अपनी चाची और नन्दराम मन्दिर की भी कई घटनायें सुनाईं, जब इनकी जांच की गई तो देखा गया कि लड़की की बताई हुई सारी बातें सच हैं। मन्दिर के पुजारी ने भी बताया कि उसकी बताई हुई बातों का सम्बन्ध सचमुच इसी मन्दिर से है। बात सच थी, पर लौटना खाली हाथ ही पड़ा। 4 वर्ष का एक नन्हा बालक अपने पिता से बोला—‘‘पिताजी मुझे बन्दूक खरीद दीजिये शिकार खेलने का मन करता है।’’ पिता ने सोचा लड़के ने किसी को ऐसा कहते हुये सुना होगा। बच्चे अनुकरणशील होते हैं। बात याद रही आयी होगी सो उसने बन्दूक की मांग करदी। स्नेह में आकर—कुछ बहलाने की दृष्टि से कह दिया—बेटा! मेरे पास इतने रुपये कहां हैं? जो तुम्हें बन्दूक खरीदूं।

लड़के ने पहले जैसी स्वाभाविक मुद्रा में कहा—पिताजी! पैसों की चिन्ता मत कीजिये। मैंने बहुत से रुपये जमीन के अन्दर छिपाकर रखे हैं आप चाहें तो मेरे साथ पिलखाना गांव चलें—वहां मैं अपने गढ़े रुपये निकालकर दे सकता हूं।

घटना शाहजहांपुर (उ.प्र.) जिले की और वहां से 12 मील दूर एक छोटे-से गांव माहरा की है जो कुछ समय पूर्व अखबारों में भी प्रकाश में आई थी और जो पुनर्जन्म की वास्तविकता से सम्बन्ध रखती है।

यह कोई नई बात नहीं थी। माहरा ग्राम का यह लड़का अपने पिता पुत्तू लाल पासी को पहले भी कई बार कह चुका था कि पिताजी मैं तो पिलखाना का लोहार हूं मेरी स्त्री है, बच्ची है, मेरे भाई का नाम दुर्गा है मेरी ससुराल कांजा गांव में हैं। पिता अपने बेटे की बात सुनता और भारतीय मान्यताओं के अनुरूप अनुभव भी करता कि बच्चा हो सकता है पूर्व जन्म में सचमुच ही पिलखाना में रहा हो। पर वह हर-हमेशा बच्चे की पुरानी स्मृतियों को टालता ही रहा।

किन्तु जब उसने धन गढ़े होने की बात कही तो कौतूहल वश कहिये या लालच में, वह बच्चे को पिलखाना ले गया। वहां उसने अपनी पत्नी को पहचान लिया, पुत्री को पहचान लिया। यद्यपि घर का कई स्थानों पर पुनर्निर्माण हो चुका है तथापि वह अपने कमरे में गया और वह धन जो उसने पूर्व जन्म में गाढ़ा था बता दिया। उसके पूर्व जन्म के भाई दुर्गा ने वहीं सबके सामने खोदा और सचमुच ही गढ़ा हुआ धन पाकर आश्चर्यचकित हो गया। बच्चे से कई प्रश्न पूछे गये जो उसने सच-सच बता दिये यह प्रमाणित हो गया कि वह दुर्गा का भाई ही है पर उसने कहा—जब मैं बीमार था तब मेरे लिये एक नई धोती और एक नया कुर्ता आया था। वह मैं पहन नहीं पाया था। वह अमुक बक्से में रखे थे। घर वालों ने वह बक्सा खोला तो सचमुच जैसी उसने बताई थी वैसी धोती और वैसा ही नया कुर्ता रखा हुआ मिल गया। पर उस बेचारे को वह नया कुर्ता भी नहीं मिल सका। उसी तरह खाली हाथ अपनी उस नई जन्मभूमि में लौट आया जिस तरह जिन्दगी भर कहीं से भी छल-कपट और अनीतिपूर्वक बटोरने वाले लोग मृत्यु के समय खाली हाथ लौट जाते हैं। संचित कमाई की एक पाई भी तो साथ नहीं जाती शुक्ला यागना।

करुण की ओर संकेत करते हुए 5 वर्ष की लड़की शुक्ला ने कहा—यह हमारे ‘तूमी’ हैं। खेतू नामक करुण के बड़े भाई को उसने मीनू के चाचा और श्री हरिधन चक्रवर्ती की ओर संकेत से हो उसने कहा—यह मीनू के पिता हैं। और ‘मीनू’ को तो देखते ही उसकी वर्षों की करुणा और ममता फूट पड़ी। थी वह पांच वर्ष की ही बालिका, पर एक प्रौढ़ माता की तरह उसकी आंखों से आंसू झरने लगे।

‘तूमी’ बंगाल में छोटे देवर को कहते हैं। करुण को उसकी बड़ी भाभी ही तूमी कहती थी और सब कुटी कहा करते थे। इससे घटनास्थल पर उपस्थित सभी व्यक्ति आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सके। पच्चीस-तीस व्यक्तियों के बीच अपने पूर्वजन्म के ति, देवर, श्वसुर और पुत्री को पहचान लेना कौतूहल वर्द्धक था। शुक्ला का जन्म सन् 1954 में पश्चिमी बंगाल के कम्पा नामक गांव में श्री के.एन. सेन गुप्ता के यहां हुआ। अभी वह कोई दो वर्ष की ही हुई थी और बोलने का हल्का हल्का-सा ही अभ्यास हुआ था, तभी वह कोई गुड़िया, लकड़ी या जो कुछ भी खेलने को पाती, उसे ही ‘मीनू-मीनू’ कहकर अपने हृदय से लगा देती। किशोर बालिका में मातृत्व के यह प्रौढ़ संस्कार घर वालों को आकृष्ट अवश्य करते, पर किसी ने उस पर उसी तरह गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया।

शुक्ला जैसे-जैसे बड़ी होने लगी, उसके मस्तिष्क में पूर्व जन्म की स्मृतियां और भी तीव्रता से उभरने लगीं। वह अपनी मां से, पिता से और सब घर वालों से कहती—मेरी ससुराल भारपाड़ा के रथतला स्थान में है। वहां मेरे पति, देवर और सौतेली सास रहती है। मेरे पति मुझे एक ही बार सिनेमा दिखाने ले गये थे। उस पर सास बड़ी नाराज हुई थी। मेरी लड़की का नाम मीनू है। आप लोग मुझे रथतला ले चलिये, मुझे अपनी मीनू की बहुत याद आती है। मरने से लेकर मुझे अब तक भी उसकी याद नहीं भूलती। शुक्ला अभी पांच वर्ष की ही थी, पर इतनी बातें बताती थी कि घर वाले हैरान रह जाते। पता लगने पर मालूम हुआ कि सचमुच वहां से कोई 15 मील दूरी पर रथतला स्थान है। वे लोग एक दिन मीनू शुक्ला को लेकर वहां पहुंचे और गांव के किनारे ही ले जाकर छोड़ दिया। इसके बाद शुक्ला गलियों-गलियों होती हुई अपने ससुराल के घर जा पहुंची।

इसके बाद उसने अपने पूर्व के सभी सम्बन्धियों को न केवल पहचान लिया वरन् प्रत्येक के साथ उसने भारतीय नारी के आदर्शानुरूप लज्जा व संकोच का प्रदर्शन भी किया। उसने बताया कि मेरा पहले का नाम ‘मना’ था। डा. पाल आदि परामनोविज्ञान के शोधकर्ताओं को कई ऐसी बातें भी बताईं, जो उसके पति के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था और वे सच भी निकलीं। विश्वास विश्व विद्यालय का परामनोविज्ञान विभाग इस सम्बन्ध में बड़ी तत्परता से व्यापक शोध कार्य कर रहा है। इस अनुसंधान कार्य में आश्चर्यजनक तथ्य हाथ लगे हैं। नीचे कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं, वह इस विश्व-विद्यालय के परामनोवैज्ञानिकों की खोजें हैं—

जयसेना परिवार इस बात से दुःखी तो होता था पर सन 1965 तक उन्होंने इस सम्बन्ध में कोई छानबीन नहीं की। एक दिन श्रीमती जयसेना और उनके प्रति अपने किसी सम्बन्धी से भेंट करने मटाले जा रहे थे। 24 मील की यात्रा करते ही बच्चा सीट पर खड़ा होकर चिल्लाने लगा—‘‘यही मेरी मां का घर है, मुझे उतार दो।’’ जाते समय तो बच्चे को बलपूर्वक बैठा लिया गया किन्तु उन सबने लौटते समय सच्चाई की जांच करने का निश्चय किया। लौटते समय उन्होंने एक टैक्सी कर ली। जैसे ही टैक्सी उस स्थान पर पहुंची बच्चा फिर चिल्लाया टैक्सी रोक दी गई। बच्चा उससे उतर कर एक घर की ओर तेजी से भागा। बच्चे को पकड़ कर लोग फिर गाड़ी में तो ले आये पर यह पता लगा लिया कि यहां सेनेविरले नाम की महिला का बच्चा कई वर्ष पूर्व खो गया था।

कुछ दिन बाद विस्ठत जांच के लिये बच्चे को वहां फिर लाया गया तो बच्चा स्वयं आगे चलकर अपने पूर्वजन्म के घर तक पहुंच गया और सेनेविरले के पैरों पर मिठाई रखकर मां-मां कह कर रोने लगा। उसने अपनी मां को याद दिलाते हुए यह भी बताया कि एक बार उसके भाई ने उसे पीटा था। चाचा चार्ली के बिजली के कारखाने और अपने धान के खेत भी उसने पहचान लिये। सेनेविरले जो कभी पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं करती थीं मान गईं कि तीन वर्ष पूर्व उनका जो बच्चा खो गया था, वही जयसेना के उदर से जन्मा है।

जयपुर के एक सरकारी कर्मचारी के 7 वर्षीय बालक मुकुल ने अपनी पूर्व जन्म की घटनायें बता कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। लड़के ने बताया कि वह लखनऊ मेडीकल कालेज का विद्यार्थी था। अपने भाई के साथ कार में जा रहा था तो कार के ट्रक से टकरा जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसने यह भी बताया कि उसकी बहिन का नाम आशा—ग्वाले का गोविन्द और कुत्ते का टामी था, बच्चा छोटी आयु में ही कितनी ही बीमारियों के सम्बन्ध में जानकारी तथा दवाएं बताता था।

मथुरा से थोड़ी दूर पर छाता कस्बा है। वहां के निवासी श्री ब्रजलाल वार्ष्णेय के घर एक बच्चे ने जन्म लिया। उसका नाम प्रकाश रखा गया। अभी यह बालक चार ही वर्ष का हुआ था कि वह एक दिन रात को सोते-सोते उठा, घर से निकल कर बाहर आ गया और सड़क की ओर चल पड़ा यह तो अच्छा हुआ कि घर वालों को पता चल गया वे पीछे-पीछे भागे और बच्चे को थोड़ी ही दूर से पकड़ लाये।

किन्तु हैरानी उस समय और बढ़ गई जब प्रकाश का स्वभाव सा हो गया कि वह रात के अंधेरे में ही अकेला जाग पड़ता और चुपचाप घर से निकल कर सड़क की ओर भागने लगता। घर वाले पकड़ते और पूछते तो वह कहता—मुझे कोसी कलां ले चलो मेरा घर कोसी में है वहां मेरे माता-पिता, भाई और बहन हैं मैं उनसे मिलूंगा।

वार्ष्णेय परिवार लगातार की इस परेशानी से चिन्तित तो था ही अब उनकी जिज्ञासायें और तर्क-वितर्क भी प्रबल हो उठी। एक दिन वे बच्चे को कोसी लेकर आये भी पर दैवयोग से उस दिन वह दुकान बन्द थी जिसे वह अपने पूर्वजन्म की दुकान कहता था इसलिये वह और कुछ पहचान न पाया और इस तरह जैसे गया था वैसे ही वापस ले आया गया।

अगले दिन उस दुकान के मालिक श्री भोलानाथ जैन को पता चला कि कोई लड़का छाता से यहां आया था और यह कहता था कि यह उनके पूर्वजन्म के पिता की दुकान है तो एकाएक उन्हें 4 वर्ष पूर्व हुई अपने दस वर्षीय पुत्र निर्मल की मृत्यु की घटना याद हो आई। निर्मल बीमार पड़ा था। लगातार कोशिशों के बाद उसका बुखार टूटा नहीं एकाएक ऐसा जान पड़ा कि बालक का बुखार बिलकुल उतर गया है वह स्वस्थ चित्त होकर बातें करने लगा।

निर्मल ने कहा—‘‘मैं छाता अपनी मां के पास जा रहा हूं’’ और इसके बाद ही उसका निधन हो गया था।

उस घटना की याद आते ही श्री भोलानाथ जैन ने छाता जाने का निश्चय किया। साथ अपनी पुत्री को लेकर जब वे छाता पहुंचे और पता लगाते हुए श्री बृजलाल वार्ष्णेय के यहां पहुंचे तो बालक प्रकाश उन्हें देखते ही खुशी से नाच उठा और श्री भोलानाथ की पुत्री को अपनी बहिन तारा कर कर उसके साथ घुल-मिल कर ऐसी बातें करने लगा जैसे उसके साथ वर्षों की पहचान हो।

इस घटना के बाद प्रकाश की सोई स्मृतियां एक बार पुनः तीव्र हो उठीं। अब यह पुनः कोसी कलां जाने के लिये हठ करने लगा। श्री भोलानाथ के आग्रह पर वार्ष्णेय परिवार उसे कोसी कलां लाने के लिये राजी हो गया पर वे लोग भीतर कुछ डर से रहे थे कि कहीं ऐसा न हो कि लड़का वहां से न आने का ही हठ करने लगे और वह अपने हाथ से भी चला जाये।

कोसीकलां जाये जाने पर उसने अपने पूर्व जन्म की मां और अपने भाई जगदीश को पहचान लिया और अपने भाई देवेन्द्र को तो उसने देखते ही ‘देवेन्द्र’ कहकर पुकारा भी उससे लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि क्या पूर्व जन्मों की स्मृतियां इतनी भी स्पष्ट हो सकती हैं। दोनों परिवारों की बात-चीत से पता चला कि पूर्व जन्म के निर्मल और अब के प्रकाश की रुचि, आदतें, व्यवहार बहुत अंशों में एक ही समान हैं। निर्मल ने ही प्रकाश के रूप में जन्म लिया है। इस सम्बन्ध में कोई सन्देह शेष नहीं रहता। पहले जन्म में उसने छाता जाने का मोह प्रदर्शित किया। इस जन्म में उसकी कोसी के प्रति ममता है—कुछ ऐसी माया का फेर है कि मनुष्य बार-बार जन्म लेता और मरता है पर अपने शाश्वत स्वरूप को पहचानने और पाने का प्रयत्न नहीं करता।

पुनर्जन्म का पूर्वाभास

इसी तरह का एक और प्रसंग कल्याण मार्च 1966 में छपी बेमुला (लंका) का है। सुरेश मैतृमूर्ति नाम के एक व्यक्ति जिन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ली थी बीमार पड़ गये। बीमारी के दिनों में उन्हें किसी अज्ञात प्रेरणा से मालूम हो गया कि उसकी मृत्यु कल शाम तक अवश्य हो जायेगी और उनका दूसरा जन्म उत्तर भारत में कहीं होगा। लोगों ने इनकी बातों का विश्वास नहीं किया क्योंकि तब स्थिति काफी सुधर चुकी थी। दिन भर स्थिति सुधरती ही रही किन्तु बात उन्हीं की सच हुई सायंकाल से पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई। मरने से पूर्व उन्होंने अपनी कलाई घड़ी अपने गुरुभाई श्री आनन्द नेत्राय को दी दोनों में बड़ा आत्मा भाव था इसलिये श्री नेत्राय ने उनकी दूसरी बात का भी पता लगाने का निश्चय किया।

कई वर्ष बाद श्री आनन्द नेत्राय मद्रास आये और एक योगी से मिले उसने बताया कि सुरेश का जन्म विहार प्रांत में हुआ है। पिता का नाम रमेश सिंह और माता का नाम सावित्री बताया। इतने सूत्र मिल जाने पर श्री आनन्द नेत्राय ने पुलिस रिकार्ड की सहायता से पता लगाया। बच्चे का पता चल गया और कुछ विचित्र बातें सामने आई जैसे यह कि यह बालक भी अपने पूर्व जनम की बातें बताने लगा। आनन्द नेत्राय लंका में प्रोफेसर हैं। वे बच्चे को वहां ले गये। उसने जहां अनेक बातें स्पष्ट पहचानी, वहां लोगों को अपनी घड़ी पहचान कर आश्चर्य चकित कर दिया। आनन्द नेत्राय के हाथ की घड़ी देखते ही उसने कहा—‘‘यह घड़ी मेरी है। यह वही घड़ी थी जो मृत्यु के पूर्व सुरेश ने ही आनन्दजी को दी थी।’’

बरेली जिले के बहेड़ी ग्राम में पुनर्जीवन की एक विलक्षण घटना घटित हुई। गन्ना विकास संघ के एक चपरासी की एक अल्प-वयस्क पुत्री की मृत्यु हो गई। जब उसे दफनाने के लिए ले जाया जा रहा था तो शव हिलता डुलता दिखाई दिया। जमीन पर रखदी गई और थोड़ी देर में ही वह जीवित होकर उठ बैठी। और भी विचित्र बात उस समय हुई जब उस बालिका ने जैसे ही लौट कर घर में कदम रखा तो पड़ोस की एक उसी आयु की बालिका की मृत्यु हो गयी। यह घटना मृत्यु के सम्बन्ध में और भी दार्शनिक गूढ़ता पैदा करने वाली कही जा रही है। इससे पता चलता है कि मृत्यु परमात्मा की एक नियमित व्यवस्था है भले ही उसे समझने में कुछ समय क्यों न लगे।

मध्य प्रदेश छतरपुर जिले के असिस्टेंट इन्सपेक्टर आफ स्कूल्स श्री एम.आइ. मिश्र की एक कन्या जिसका नाम स्वर्णलता है, अपने पिछले दो जन्मों की बातें बताती है। इससे पहले वह असम के किसी गांव में जन्मी थी। बालिका जिसे न तो कभी असम जाने का अवसर मिला न उसने असम भाषा ही सीखी कुछ असमी भाषा के गीत भी सुनाती है, इसे अति मस्तिष्क की स्मृति शक्ति का चमत्कार ही कहा जा सकता है।

स्वर्णलता इससे पहले जबलपुर जिले में शाहपुर के समीप किसी गांव में जन्मी थी। वह कहा करती कि उसके दो बेटे भी हैं, जब उसे उक्त स्थान पर ले जाया गया तो उसने घर, अपने दोनों बेटे और बहुत से पड़ौसियों को भी पहचान लिया। पता लगाने पर मालूम हुआ कि 19 वर्ष पूर्व इस घर में विंदिया देवी नामक एक महिला की मृत्यु हृदय गति रुक जाने के कारण हो गई थी। 28 वर्ष में उसने दो जन्म धारण किये। विभिन्न स्थान और परिस्थितियों में जन्म लेने के पीछे परमात्मा का नियम विधान है, यह तो वही जानते होंगे। पर यह सुनिश्चित है कि मृत्यु के बाद ही जीवन का अन्त नहीं हो जाता वरन् जीवात्मा की विकास यात्रा के यह दो पटाक्षेप हैं। जैसे दिन और रात गुजरने के बाद भी उनका क्रम नहीं टूटता, उसी प्रकार मृत्यु के बाद भी जीवन आता रहता है।

परामस्तिष्क की तरह वैज्ञानिकों को अब यह भी सन्देह होने लगा है कि स्थूल शरीर में रहने वाले चेतन शरीर के सेल्स अग्नि या प्रकाश जैसे परमाणुओं से मिलते जुलते होते हैं। इस शरीर में मस्तिष्क की संकल्प भावनायें, विचार और क्रिया-कलापों के द्वारा परिवर्तन होता रहता है। मृत्यु के बाद परिवर्तित और जीव का कर्मगति के अनुसार अन्य शरीर में विकास हो सकता है।

राजस्थान विश्व-विद्यालय के परामनोवैज्ञानिक डा. एच. बनर्जी के अनुसार तिब्बती लोगों का भी ऐसा ही विश्वास है। वहां की मान्यतायें भारतीयों जैसी ही हैं और यह माना जाता है कि कुछ लोगों के पुनर्जन्म तो सामान्य क्रम में होते रहते हैं पर संकल्पवान् तेजस्वी आत्मायें अपनी इच्छानुसार जीवन धारण करती हैं, इस सम्बन्ध में तिब्बत के वर्तमान 24वें दलाईलामा की घटना प्रस्तुत की जा सकती है।

वर्तमान दलाईलामा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि वे 13वें दलाईलामा के ही अवतार हैं। उन्होंने मृत्यु के समय ऐसे चिह्न छोड़े थे कि उनका जन्म चीन के किसी प्रान्त में होगा। निश्चित समय तक प्रतीक्षा के बाद तिब्बती मन्त्रि-परिषद के सदस्य चीन गये और और उस बच्चे का पता लगा लिया, तब वह बालक 2 वर्ष का ही था। उसे ल्हासा लाने की अनुमति मांगी गई तो वहां के गवर्नर ने उसके बदले तीन लाख चीनी रुपये लेकर बच्चे को ले जाने की अनुमति प्रदान की। जब इस बालक को तिब्बत लाया गया और उसे विधिवत समारोह के साथ दलाईलामा के सिंहासन पर बैठाया गया तो उसने सम्पूर्ण क्रियायें इतनी शुद्धता और गम्भीरता से की मानों वह स्थान और वहां के सभी कर्मचारी गण बहुत पहले से ही परिचित रहे हों।

प्रस्तुत घटनायें पढ़कर हमें अपने शास्त्रों के कथन पर विश्वास करने के लिये बाध्य होना पड़ता है। परमात्मा जीवन को अनन्त आनन्द लेने के लिये बार-बार सुयोग प्रदान करता है। जीव भौतिक आकर्षणों में पड़कर उस महाशक्ति को समझ नहीं पाता। माया का स्पर्श होते ही वह बुराइयां करने लगता है और इस तरह कर्म में बंधकर पुनर्जन्म के चक्कर में पड़ा दुःख उठाता रहता है। यह घटनायें, कुछ निर्मल और जागृत आत्माओं की हो सकती हैं जिन्हें अपने पूर्व जन्मों की थोड़ी याद रह जाती हो, अधिकांश को तो ज्ञान ही नहीं होता कि उनकी बाल्यावस्था किस तरह बीती तो उससे पूर्व और उससे भी पूर्व उनकी क्या स्थिति थी, उसका ज्ञान तो क्या, उसकी कल्पना भी उन्हें नहीं उठती।

परिस्थितियां, घटनायें और विज्ञान द्वारा इन्द्रियातीत जगत् की उपस्थिति स्वीकार कर लेने पर यह सोचने को विवश होना पड़ रहा है कि मनुष्य जीवन का अन्त मृत्यु से नहीं हो जाता। काल-चक्र अनवरत चलता रहता है। मृत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद मृत्यु का क्रम निरन्तर जारी रहता है।
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