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प्रेम ही परमेश्वर...
प्रेम ही परमेश्वर है
प्रेम साधना द्वारा आन्तरिक उल्लास का विकास
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Page Titles
पढ़ै सो पंडित होय-ढाई अक्षर प्रेम के
प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
प्रेम और उसकी शक्ति
प्रेम समस्त सद्प्रेरणाओं का स्रोत
प्रेम जगत का सार और कुद सार नहीं
प्रेम का अमृत और उसकी उपलब्धि साधना
मानव जीवन का अमृत : प्रेम
प्रेम का अमृत मधुरतम है
आनन्द का मूल स्रोत प्रेम ही तो है
गर न हुई दिल में इश्क की मस्ती
प्रेम साधना द्वारा आन्तरिक उल्लास का विकास
प्रेम का अमृत और उसका प्रतिदान
प्रेम और सेवा ही तो धर्म है
आत्मजागृति की अमर साधना : प्रेम
प्रेम की परख-प्रेम की परिणति
तुलसी प्रेम पयोधि की ताते माप न जोख
सृष्टि का विकास प्रेम से ही सम्भव
प्रेम की आश्श, प्रेम की प्सास, पशु-पक्षियों के भी पास
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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