नारी की महानता

गायत्री मंत्र का पाँचवाँ अक्षर 'व' नारी जाति की महानता और
उसके विकास की शिक्षा देता है-

व-वद नारी विना कोऽन्यो निर्माता मनुसन्तते: ।
महत्त्व रचनाशक्ते: स्वस्या नार्या हि ज्ञायताम् ।।

अर्थात-''मनुष्य की निर्मात्री नारी ही है । नारी को अपनी शक्ति
का महत्त्व समझना चाहिए ।''

नारी से ही मनुष्य उत्पन्न होता है । बालक की आदिगुरु उसकी
माता ही होती है । पिता के वीर्य की एक बूँद ही निमित्त मात्र होती है,
बाकी बालक के समस्त अंग-प्रत्यंग माता के रक्त से बनते हैं । उस रक्त में
जैसी स्वस्थता, प्रतिभा, विचारधारा, अनुभूति होगी, उसी के अनुसार
बालक का शरीर, मस्तिष्क और स्वभाव बनेगा । नारियों यदि अस्वस्थ,
अशिक्षित, अविकसित, पराधीन, कूपमंडूक और दीन-हीन रहेंगी तो
उनके द्वारा उत्पन्न बालक भी इन्हीं दोषों से युक्त होंगे । ऊसर खेत में
अच्छी फसल उत्पन्न नहीं हो सकती ।

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