महिला जागरण की दिशाधारा
जहाँ भी महिला जागरण का संदेश पहुंचे, जहां भी उसकी उपयोगिता समझी जाय, वहाँ इस अभियान को बढ़ाने के लिए पहला कदम स्थानीय महिला सगठन बना देने के रूप में उठाया जाय । नारी समस्या किसी व्यकि विशेष की कठिनाई नहीं है जिसे एकाकी प्रयल से हल किया जा सके ।
नारी उत्कर्ष यों एक वर्ग विशेष की कुछ कठिनाइयां दूर करने वाला विरोधात्मक आंदोलन दीखता है पर वस्तुत: वह है नहीं । फसल बोने के लिए खेत जोतना पडता है और भवन बनाने के लिए नींव खोदनी पड़ती है । जुताई और खुदाई का कार्य तोड-फीड जैसा लगता है, पर वस्तुत: उसे उत्पादन का निर्माण का अविछिन्न अंग ही कहना चाहिए । वस्तुत: अपना अभियान विशुद्ध रूप से सृजनात्मक है । घृणा और द्वेष को, विरोध और विद्रोह को भड़काने में हमें कोई रुचि नहीं है । ये विष बीज किसी भी क्षेत्र में बोये जाँय, आगे चलकर सर्वनाशी प्रतिफल ही उत्पन्न करते हैं । इस लक्ष्य और सत्य का हमें पूरा-पूरा अनुभव है । अस्तु, सुधार प्रक्रिया को स्नेहसिक्त बनाये-रहने का विलक्षण प्रयोग भी अपनी गतिविधियों का अंग बनकर चलेगा ।
इतना विस्तृत और इतना महत्वपूर्ण अभियान एकाकी प्रयत्नों से नहीं चल सकता । व्यापक प्रयोजन सदा जन सहयोग से ही संभव होते है, उनके लिए जन शक्ति जुटानी पड़ती है । जन मानस का परिवर्तन-परिष्कार जिन गतिविधियों को अपनाने से संभव हो सकता है, वे जन सहयोग के बिना किसी भी प्रकार सभव नहीं हो सकतीं । नारी उत्कर्ष के सुदृढ़ आधार तभी बनेंगे जब उनकी सुविस्तृत पृष्ठभूमि बने और उसे समर्थन प्राप्त हो । इसके लिए संगठित प्रयत्न ही सफल हो सकते हैं ।
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