आज हिंदू समाज में कर्मकांडों के प्रति सर्वत्र अनास्था का वातावरण व्याप्त दिखलाई पड़ रहा है। बहुत ही थोड़े लोग हैं, जो निष्ठा और श्रद्धा के साथ कर्मकांडों के विधि-विधानों का पालन करते हैं, शेष अश्रद्धा के अंधकार में भटक रहे हैं। ऐसा क्यों है। इस पर विचार करना होगा।
यदि हम संसार के अन्य धर्म-संप्रदायों को देखें तो हमें ज्ञात होगा कि उनमें से प्रत्येक में किसी न किसी रूप में कर्मकांड की व्यवस्था है पर उन संप्रदायों के अनुयायियों के मन में अपने कर्मकांडों के प्रति वैसी अनास्था नहीं है जैसी अपने समाज में व्याप्त है। संभवत: इसका प्रमुख कारण हो सकता है कि उन संप्रदायों में उदार एवं स्वतंत्र चिंतन की उतनी खुली छूट नहीं है जितनी हिन्दू धर्म ने दे रखी है। इस उदार एवं स्वतंत्र चिंतन की परंपरा का आज हिन्दू समाज में दुरुपयोग होता दिखलाई पड़ रहा है और इसका मूल कारण है हमारा अधकचरा ज्ञान तथा इसके लिए जिम्मेदार है हमारी दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति जो हमें दिशाहीनता एवं मूल्य विहीनता के गुफा-कंदरा में भटकने के लिए विवश कर रही है।