जीवन जीने की कला - ३

हम अपने आपको प्यार करें,ताकि ईश्वर से प्यार कर सकने योग्य बन सकें।हम अपने कर्त्तव्यों का पालन करें,ताकि ईश्वर के निकट बैठ सकने की पात्रता प्राप्त कर सकें ।जिसने अपने अंत:करण को प्यार से ओत-प्रोत कर लिया,जिसके चिंतन और कतृत्व में प्यार बिखरा पड़ता है,ईश्वर का प्यार उसी को मिलता है। पं-श्रीराम शर्मा आचार्य

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