परब्रह्म परमात्मा की चेतना, प्ररेणा, सक्रियता, श्रमता एवं समर्थता को
गायत्री कहते हैं। इस विश्व की सर्वोपरि शक्ति है। अन्य छुट-पुट शक्तियाँ
जो विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होती है, वे देव नामों से पुकारी
जाती हैं। यह समस्त देवशक्तियाँ उस परम शक्ति की किरणें ही हैं, उनका
अस्तित्व इस महत्त्व के अंतर्गत ही है। उपादान, विकास एवं निवारण की
त्रिविध देव शक्तियाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के नाम से विख्यात हैं। पंच
तत्वों की चेतना को आदित्य, वरुण, मरुत और अंतरिक्ष पुकारते हैं। इंद्र,
बृहस्पति, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, गणेश, अश्विनी, वसु, विश्वेदेवा आदि
सृष्टि के विभिन्न प्रयोजनों में संलग्न शक्तियाँ ही हैं। चूँकि ये दिव्य
हैं, प्राणियों को उनका अपार अनुराग मिलता है इसलिए इन्हें देवता कहते हैं
और
श्रद्धापूर्वक पूजा, अर्चा एवं अभिवंदन करते हैं। यह सभी देवता उस महत्तत्व
के स्फुल्लिंग हैं जिसे अध्यात्म भाषा में गायत्री कहकर पुकारते हैं। जैसे
जलते हुए अग्नि कुंड में से चिंनागारियाँ उछलती हैं, उसी प्रकार विश्व की
महान शक्ति सरिता की लहरें उन देवशक्तियों के रूप में देखी जाती हैं।
सम्पूर्ण देवताओं की सम्मिलित शक्ति को ‘गायत्री’ कहा जाए तो यह उचित ही
है।