मनुष्य स्वयं ही एक जादू है । उसकी चेतना चमत्कारी है । उसकी दौड़ जिधर भी चल पड़ती है, उधर ही चमत्कारी उपलब्धियाँ प्रस्तुत करती है । बाह्य जगत की अपेक्षा अंतर्जगत की शक्ति और सक्रियता अदृश्य होकर भी कहीं अधिक प्रखर और प्रभावपूर्ण होती है । मष्तिष्क में क्या विचार चल रहे होते हैं ? यह दिखाई नहीं देता, पर क्रिया व्यापार की समस्त भूमिका मनोजगत में ही बनती है
अंतर्जगत विशाल और विराट है, उससे एक व्यक्ति ही नहीं बड़े समुदाय भी प्रेरित और प्रभावित होते हैं ।