अध्यात्मवाद ही क्यों

आज का व्यक्ति समस्याओं के जाल में दिन-दिन जकडता चला जा रहा है । क्या धनी, क्या निर्धन, क्या विद्वान्, क्या अशिक्षित, क्या रुग्ण क्या स्वस्थ सभी स्तर के मनुष्य अपने को अभावग्रस्त और संकटग्रस्त स्थिति में पाते है । भूखे का पेट-दर्द दूसरी तरह का अतिभोजी का दूसरे ढंग का पर कष्ट-पीड़ित तो दोनों ही समान रूप से हैं । जीवन क्षेत्र में तथा संसार में समस्याओं के आकार-प्रकार अनेक प्रकार के दिखते हैं । उनमें भिन्नता भी बहुत रहती है । एक-दूसरे से असंबद्ध प्रतीत होती है और उनके कारण पृथक्-पृथक् दिखाई पडते हैं, पर उनके मूल में एक ही कारण होता है, अध्यात्मवादी दृष्टिकोण । यदि इस तथ्य को समझ लिया जाए तो असंख्य समस्याओं और अगणित संकटो का समाधान एक ही उपाय से कर सकना संभव हो जायेगा । प्रकाश के अभाव का ही नाम अंधकार है । जब रोशनी होती है त्ये अंधकार चला जाता है । अध्यात्म की ज्योति बुझ जाने से संकट खड़े होते हैं और उस प्रकाश के श्रमइल पड़ जाने से अनेकानेक समस्याएँ उठती और उलझती चली जाती हैं । छुट-पुट उस्वार तो अनेक ढंग से निकल आते हैं किंतु टिकाऊ हल अध्यात्म के सहारे से ही निकल सकता है । पेट में अपच होने से रक्त अशुद्ध होता है और बढती हुई सूजन से अनेक नाम रूप वाले रोग उत्पन्न हो जाते हैं ।

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