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Akhand Jyoti
Year 1999
Version 1
अहं गला तो...
अहं गला तो बना ब्रह्मर्षि
March 1999
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Page Titles
पुरुषार्थ की दिशा
तीसरा संस्करण
मनुष्य गया- गुजरा नहीं , प्रचण्ड शक्ति का पुंज है
विवेक का नाश- सर्वनाश
कहीं हम महाविनाश की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं
जातस्य ही ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च
विचार-प्रवाहों से प्रभावित होता है चिन्तन
ध्यान क्यों व कैसे किया जाय
हस्तलिपि व्यक्ति त्त्व का दर्पण है
कहीं आपने भी होली यों ही जलते हुए तो नहीं देखी
विशुद्धि में प्रतिष्ठित कुण्डलिनि देती है अक्षय यौवन
पुनर्जन्म को प्रमाणित करती एक सच्ची घटना
प्रार्थनाः एक विनम्र पुरुषार्थ
संकीर्ण स्वार्थपरता से उबरें , देवमानव बनें
पापनाशक चान्द्रायण व्रतः विविध रुप
निर्लिप्त- अनासक्त कर्म
आध्यात्मिक विकासवाद ही देता है अन्ततः समाधान
युगपुरुष की लेखनी से ................
सभ्य समाज का नवनिर्माण किस बुनियाद पर
मातृवत् परदारेषु
सर्प हमारे शत्रु नहीं, मित्र हैं
सच्चा वैरागी व योगी कौन
एकान्त सेवन भी करिये
अहं गला तो बना ब्रह्मर्षि
परम पुज्य गुरुदेव की अमृत वाणी
बुद्धिमानो! बुद्धि का सदुपयोग करो
अपनों से अपनी बात
सच्चा सतयुग आयेगा (कविता) -शचीन्द्र भटनागर
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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