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Akhand Jyoti
Year 1980
Version 1
आत्मोत्कर्ष और श्रेय...
आत्मोत्कर्ष और श्रेय साधना का स्वर्णिम अवसर
May 1980
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Page Titles
पदार्थ और प्राणियों की सार्मथ्य का उद्गम
लो अब पदार्थ ही मर गया
समस्त सम्भावनाओं से परिपूर्ण मानवीय व्यक्तित्व
लिंग भेद शाश्वत नहीं, परिवर्तनशील है!
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युधुर्रवं जन्म मृतस्य च
संस्कारों की महत्ता एवं उपयोगिता
अदृश्य का अनुकूलन आवश्यक-अपेक्षित
सावधान ! खरदूषण-त्रिशिरा-मारीच आ रहें हैं
अवरोध पुरुषार्थ के निरीक्षक, परीक्षक
सहकारिता ही उत्कर्ष का आधार
विचारों और भावनाओं की शक्ति...सार्मथ्य
स्वास्थ्य और शान्ति का शत्रु क्रोध
तीन महान तथ्य- अनुशासन, संयम एवं संरक्षण
गायत्री नगर में देव परिवार
विवेकवान् अपना जीवन दर्शन बदलें
प्रवाह में न बहते रहें, औचित्य भी देखें
प्रभात की पुण्य वेला में आत्म परिवर्तन
आत्मोत्कर्ष और श्रेय साधना का स्वर्णिम अवसर
स्वार्थ और पमार्थ का असाधारण समन्वय
प्रशिक्षणार्थयों को आवश्यक सूचनाएँ
बालकों से भी गये बीते (कविता) -मंगल विजय
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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