निजी साधनों के अभाव (Kahani)

September 1991

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महिला सन्त राविया अपने पूजा स्थल पर एक जल कलश रखती थी और एक जलता अंगारा भी।

लोग इन पूजा प्रतीकों का रहस्य पूछते तो वे कहती मैं अपनी आकाँक्षाओं को पानी में डुबाना चाहती हूँ और अहंकार को जलाना चाहती हूँ। ताकि पतन के इन दोनों अवरोधों से पीछा छुड़ा कर प्रियतम तक पहुँच सकूँ।

किस स्तर का है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति मुखौटा पहन कर अपनी मुखाकृति को स्थायी रूप से नहीं बदल सकता। इसी प्रकार व्यवहार कुशलता में चापलूसी भर लेने मात्र से कोई व्यक्ति सज्जन नहीं बन सकता।

जिसमें मूलतः सज्जनता का गुण नहीं है, वह बनावटी चापलूसी को देर तक छिपाये नहीं रह सकता। प्रकट होने पर परिचयकर्ता को दुहरा क्षोभ होता है। अवाँछनीय व्यक्ति अपने दुर्गुणों को अनायास ही प्रकट करते रहते हैं। उनके दुर्गुण सहज स्वभाव में प्रकट होते रहते हैं। हर कोई उसका स्तर जान लेता है और खतरे से सावधान रहता है। इसके विपरीत जो अपनी दुर्जनता को मुखौटे के नीचे छिपाकर कुछ के बदले कुछ दीखने का प्रयास करता है उसकी कलई खुलने पर दुष्टता और धूर्तता का दुहरा आरोप लगता है। ऐसे व्यक्ति से लोग सहज ही सतर्क हो जाते हैं और उसका भरोसा सामान्य बातों में भी नहीं करते। फिर सहयोग देने जैसा प्रश्न तो उठता ही नहीं। ऐसे व्यक्ति दरिद्र रहने पर सदा वैसे ही बने रहते हैं। उन्हें दूसरे समर्थ व्यक्तियों का ऐसा सहयोग नहीं मिलता जिसके सहारे वे अपने अभावों की पूर्ति कर सकें। निजी साधनों के अभाव में दूसरों के साधनों से अपना काम चला सकें।

यह संसार पारस्परिक सहयोग के आधार पर खड़ा है। व्यापार, परिवार, समाज, राजनीति, धर्म, कला आदि के क्षेत्र में कोई, भी व्यक्ति एकाँकी, प्रवीण, पारंगत या सफल नहीं बनता। उसे अन्य अनेकों की सहायता अपेक्षित होती है। जिसे इस संदर्भ में जितने सहयोग का सुयोग मिल जाता है वह उसी अनुपात से प्रगति करता एवं सफल होता है। जिसे इस संदर्भ में जितनी कमी रहती है, वह उतना ही पिछड़ जाता है और उसी अनुपात में असफल रहता है।

संसार में ऐसे अगणित व्यक्तियों के उदाहरण हैं जो गई बीती परिस्थितियों में जन्मे। पारिवारिक स्थिति गई गुजरी थी। निजी साधनों का सर्वथा अभाव रहा फिर भी वे ऊँचे उठे और समयानुसार उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचे। ऐसा चमत्कार कैसे हो सका? इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने पर एक ही कारण उभर कर सामने आता है कि उसने अपने सामान्य कार्य क्षेत्र में असाधारण श्रमशीलता, प्रामाणिकता और वफादारी का परिचय दिया। फूल खिलता है तो उसकी महक दूर-दूर तक फैलती है। उसकी शोभा बढ़ाने, यश गाने के लिए तितली, भौंरे, मधु-मक्खी, गुजरने वाले दर्शक मोहित होते और बखान करते रहते हैं। यह उभरती प्रतिभा दूर-दूर तक पहुँचती है। व्यक्ति के साथ लिपटी रहने के कारण जहाँ भी पहुँचना होता है वहीं विश्वास का वातावरण उत्पन्न करती है। फल यह होता है कि सद्गुणों से विश्वास और विश्वास से सहयोग मिलने लगता है। दूसरों का सहयोग भी निजी साधनों के समान ही उपयोगी सिद्ध होता है और प्रगति प्रयोजनों में असाधारण रूप से कारगर सिद्ध होता है।

जो पिछड़ी परिस्थितियों में जन्मने पलने के उपरान्त आजीवन वैसी ही गई गुजरी परिस्थितियों में फँसे रहे उनका कारण एक ही है कि आरंभिक पिछड़ापन स्वभाव, चिंतन और चरित्र व्यवहार का अंग बन कर उसी घटिया स्तर को बनाए रहा। सुधार का कोई प्रयत्न न हुआ। फलतः जहाँ भी संपर्क सधा वहाँ घृणा, उपेक्षा और अवमानना ही प्रतिक्रिया बन कर प्रकट हुई। दयावश किसी ने कभी कोई टुकड़ा फेंक दिया हो तो वह दूसरी बात है किन्तु ठोस और महत्वपूर्ण सहयोग करने के लिए कोई विचारशील तैयार नहीं होता क्योंकि बुद्धिमत्ता द्वारा यह सहज ही समझ लिया जाता है कि दलदल में डाली गई कोई वस्तु उसी में फँस कर रह जाती है। न वह स्वयं उबरती है और न दूसरों को उबारती है।


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