सर विश्वेश्वरैया से भारत को समृद्ध बनाने की योजनाएँ बताने के लिए पूछा गया तो उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश के हर नागरिक को एक समृद्धि उत्पादक यन्त्र के रूप में विकसित किया जाय। इसके लिये उन्होंने चार सूत्र बतायें।
(1)श्रम के प्रति उपेक्षा की वर्तमान प्रवृत्ति को दूर किया जाय। हर व्यक्ति के मन में श्रम के प्रति सम्मान और उत्साह जगाया जाय
(2) काम निश्चित, नियमित और अनुशासित रीति से करने की आदत डाली जाय! अनियमितता, अस्त-व्यस्तता उपेक्षा और अन्यमनस्कता को स्वभाव का अंग बनने न दिया जाय।
(3) काम का स्तर ऊँचा उठाने की प्रतिस्पर्धा खड़ी की जाय। कार्य दक्षता को यश दिया जाय और पुरस्कृत किया जाय।
(4) मिलजुल कर काम करने के लाभ समझे और समझाये जाएँ । श्रम संगठनों में परस्पर गहरा मेल-जोल और स्नेह सहयोग उत्पन्न किया जाय।
सर विश्वेश्वरैया का कथन था। समृद्धि के लिए पूँजी, साधन और क्रिया प्रक्रिया के आधार खड़े करने के साथ-साथ यह ध्यान रखा जाय कि सम्पत्ति का मूल स्रोत मानवी श्रम शीलता, तत्परता और दक्षता में सन्निहित है, उस उद्गम को सुधारने से सम्पदा बढ़ाने का तथ्य पूरा हो सकेगा।