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Akhand Jyoti
Year 1977
Version 2
सद्वाक्य
सद्वाक्य
March 1977
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अगर तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारी प्रशंसा करें तो आत्म-परशंसा कभी न करो।
— पास्कल
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Page Titles
सर्वतोमुखी प्रगति के दो आधार- अध्यात्म और विज्ञान
आत्मिक प्रगति के लिए साधना की आवश्यकता
आत्म परिष्कार की साधना दूरदर्शी बुद्धिमत्ता
सद्वाक्य
सद्ज्ञान और सत्सामर्थ्य की समन्वित साधना
ब्रह्मविद्या का उद्देश्य -श्रद्धा का संवर्धन
सद्वाक्य
वर्चस् की साधना आत्मबल उभारने के लिये
ब्रह्मवर्चस् के ज्ञान-विज्ञान की तात्त्विक पृष्ठभूमि
गायत्री का धियः तत्त्व ब्रह्म विज्ञान
गायत्री का भर्गतत्व ब्रह्मवर्चस्
गायत्री का प्राणवान ब्रह्म-ते
सावित्री शक्ति का महाप्राण सविता
पाँच कोशों की स्थिति और प्रतिक्रिया
पाँच कोश और उनका अनावरण
नाभिचक्र अन्नमय कोश का प्रवेश द्वार
सद्वाक्य
प्राणायाम से प्राणमय कोश का परिष्कार
मनोमय कोश और आज्ञा चक्र
विज्ञानमय कोश का केन्द्र संस्थान हृदय चक्र
अनावश्यक धन को विकेन्द्रित करने में संलग्न (kahani)
आनंदमयकोश का अमृत कलश
Quotation
कुण्डलिनी महाशक्ति का स्वरूप और रहस्य
गृहस्थ साधक (कहानी)
कुण्डलिनी जागरण से आत्मिक और भौतिक सिद्धियाँ
आत्मशोधन और प्रायश्चित प्रक्रिया
अपनों से अपनी बात
साधना स्वर्ण-जयंती वर्ष और उसकी पूर्णाहुति
नई पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाने की एक वर्षीय शिक्षा
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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